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:६१: उदय : धर्म-दिवाकर का .
|| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
व्याख्यान मुसलमानों के आग्रह पर दरगाह में भी हुआ। मुसलमान स्त्रियों ने भी भाषण सुना कइयों ने त्याग किए।
गाँधी स्मारक की चर्चा चल रही थी। गुरुदेव के सन्देशानुसार श्रावकों ने प्रधान मन्त्री और गृहमन्त्री को तार दिया कि-'गाँधीजी की स्मृति को अहिंसक रूप देना है तो सम्पूर्ण भारत में दूध देने वाले (दुधारु) और कृषि योग्य पशुओं का वध बन्द कर दिया जाय ।'
आप जहाँ-जहाँ पधारे, सर्वत्र हिन्दू-मुसलमानों ने आपके प्रवचनों में समान रूप से भाग लिया। सभी में धर्म-जागृति होती। उन दिनों आपके प्रवचन 'बदले की भावना छोड़ो' इस विषय पर होते थे। इन प्रवचनों का हिन्दू-मुसलमान दोनों पर काफी प्रभाव पड़ा तथा साम्प्रदायिक द्वेष की अग्नि शान्त करने में बड़ा सहयोग मिला।
चातुर्मास के बाद विहार करते हुए आपश्री पाली पधारे । श्रमण-संगठन के लिए कान्स के प्रयत्न चल रहे थे। यहाँ गुरुदेवश्री के प्रयत्नों से संघ ऐक्य की योजना बनी।
संघ ऐक्य योजना जैन कान्फ्रेन्स संघ ऐक्य के लिए बहुत समय से प्रयत्नशील था। संघ ऐक्य कैसे हो? उसका आधार क्या हो ? प्रारम्भ में क्या करना चाहिए ? इन सब बातों की चर्चा चल रही थी। कान्फ्रेन्स के नेताओं के विचार थे
"साम्प्रदायिक मतभेद और ममत्व के कारण स्थानकवासी जैन समाज छिन्न-भिन्न हो रहा है । साधु-साधुओं में और श्रावक-श्रावकों में मतभेद मौजूद हैं और बढ़ते जा रहे हैं। समाजकल्याण के लिए ऐसी परिस्थिति का अन्त कर ऐक्य और संगठन करना आवश्यक है। साधु और श्रावक दोनों के ही सहकार और शुभ भावना द्वारा ही यह कार्य सफल होगा। अतः साधु-साध्वी और कान्फ्रन्स को मिलकर इस कार्य में लगना चाहिए। इस कार्य के लिए तात्कालिक कुछ नियम ऐसे होने चाहिए कि जिससे ऐक्य का वातावरण उत्पन्न हो और साथ-साथ एक ऐसी योजना बनानी चाहिए कि संगठन स्थायी और चिरंजीवी बने।"
गुरुदेव उस समय पाली में विराजमान थे। कान्फ्रन्स का डेपुटेशन संघ ऐक्य की भावना लेकर गुरुदेव के पास आया। आपश्री ने पूछा
"आप लोगों के पास क्या योजना है ? प्राथमिक योजना क्या है ?" गुरुदेव के इस प्रश्न पर डेपूटेशन के लोग चुप रह गए । तब गुरुदेव ने फिर पूछा"बिना योजना के संघ ऐक्य का कार्य आगे कैसे बढ़ेगा ?" डेपूटेशन ने कहा"आप ही बताइये।" तब गुरुदेव ने कहा
"आप लोग यह बातें सन्तों से मनवा सकें तो आगे का संघ ऐक्य का कार्य पूरा हो जायगा। नहीं तो आपका यह सब विचार व्यर्थ ही रहेगा।"
नेताओं ने जब पूछा कि 'वे बातें कौन सी हैं जिनसे कि संतगण निकट आ सकें ?' तब गुरुदेव ने निम्न बातें उन लोगों को लिखवाई
(१) एक गांव में एक चातुर्मास हो । (२) एक गाँव में एक ही व्याख्यान हो। (३) सब साधु, श्रावक कान्फ्रेन्स की टीप के अनुसार एक संवत्सरी करें। (४) सब साधु-साध्वी अजमेर सम्मेलन के प्रस्ताव के अनुसार एक प्रतिक्रमण करें ।
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