________________
: ७७: उदय : धर्म-दिवाकर का
| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
पावन नेतृत्व में मंगलमय धार्मिक महोत्सव हुआ । इसमें सर्वश्री चौथमल जी महाराज, पण्डित श्री कस्तूरचन्द जी महाराज, पण्डित श्री प्यारचन्द जी महाराज, पण्डित श्री हजारीमल जी महाराज, बड़े श्री नाथूलाल जी महाराज, पण्डित श्री हीरालाल जी महाराज, मैं (श्री केवलमुनि जी महाराज) आदि अनेक सन्त एवं विदूषी महासती हगामकंवर जी महाराज, श्री धापू जी महाराज आदि सतियाँ विराजमान थीं। सभी के समक्ष श्री चौथमल जी महाराज को चतुर्विध संघ ने 'जैन दिवाकर' की पदवी से अलंकृत किया। इस अलंकरण से समाज ने अपनी 'गुणिषु प्रमोदं' की भावना को ही व्यक्त किया । आप तो अपनी प्रवचन रश्मियों से वैसे भी दिवाकर के समान दीपित थे।
जैन दिवाकर जी महाराज सीतामऊ पधारे । सीतामऊ दरबार, राजकुमार और महारानियों ने प्रवचन सुने । वे बहुत प्रभावित हुए।
भाटखेड़ी में आप पधारे तो गांववासियों ने मंगल-गीतों से आपका स्वागत किया। यहाँ के राव साहब श्री विजयसिंह जी स्वयं आपके स्वागतार्थ गांव के बाहर तक आए । प्रभावित होकर एक प्रतिज्ञापत्र भेंट किया जिसमें महावीर जयन्ती और पार्श्वनाथ जयन्ती के दिन अगते पलवाने का वचन था।
२३ मई, १९३५ के दिन आपके चरण रायपुर (इन्दौर स्टेट) में पड़े । स्वागत के लिए वहां के रावजी आये । उन्होंने भी प्रवचनों से प्रभावित होकर जीवदया का पट्टा दिया।
आषाढ़ शुक्ला ५ को आप कुमाड़ी पधारे। कप्तान दौलतसिंह जी दोपहर को सेवा में उपस्थित हुए । प्रवचन से प्रभावित होकर अनेक लोगों ने यथाशक्ति त्याग किये।
सं० १९६२ का चातुर्मास कोटा में हुआ। कोटा के यादघर (क्रोसवेट इंस्टीट्यूशन) में 'अहिंसा' पर आपका भाषण हुआ। इस समय कोटा नरेश हिम्मत बहादुरसिंह जी महाराज कुमार, मेजर जनरल ओंकारसिंह जी आदि अनेक प्रतिष्ठित-जन उपस्थित थे। कोटा नरेश १० मिनट के लिए सुनने आये और ५० मिनट तक मंत्र-मुग्ध होकर सुनते रहे। कोटा में चार मास तक धर्मप्रभावना होती रही।
इकतालीसवाँ चातुर्मास (१९६३) : आगरा सं० १९६२ का चातुर्मास कोटा में पूर्ण कर आप इन्द्रगढ़ पधारे । इन्द्रगढ़ के ब्राह्मण समाज में ४० वर्ष से फूट अपना डेरा जमाए हुए थी। नरेश ने फूट मिटाने का प्रयास किया तो ब्राह्मणों ने स्पष्ट जवाब दे दिया-'अन्नदाता ! इस बारे में आप कुछ भी न कहें।' निराश होकर इन्द्रगढ़ नरेश चुप हो गये। आपश्री वहां पधारे तो प्रवचन सुनने के लिए विशाल जनमेदिनी उमड़ पड़ी। ब्राह्मण समाज के दोनों विरोधी दलों के मुखिया भी आते थे। एक दिन आपने 'एकता' पर ऐसा जोशीला भाषण दिया कि दोनों दलों के मुखिया खड़े होकर बोले-'संघर्ष में तो हम बरबाद हो गये । अब तो एकता की इच्छा है।'
आपने दोनों मुखियाओं को अपने पास बुलाकर कहा
"सच्ची एकता चाहते हो तो एक-दूसरे से हादिक क्षमा मांगकर अपने मन का कलुष बाहर निकाल दो और बोलो आज से हम एक हैं।"
दोनों ओर के मुखियाओं ने एक-दूसरे से क्षमा मांगी। उनके हृदय का कलुष मिट चुका था। ब्राह्मण समाज में एकता हो गई।
इस दृश्य से प्रभावित होकर राज्य के मन्त्री ने नरेश को बम्बई बधाई का तार भेजा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org