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१५७ : उदय : धर्म-दिवाकर का
॥ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-न्य |
मिली है। अनेक स्थानों पर मांस-मदिरा, शिकार का व्यवहार बन्द हो चुका है प्रयत्न चालू है, ब्रह्मचारी लालजी महाराज भी इसी में लगे हैं।"
पालीसंघ इस समय दो गुटों में विभाजित था । आप पाली से विहार कर गांव के बाहर रामस्नेही सम्प्रदाय के रामद्वारा में आ विराजे । वहाँ भी आपका व्याख्यान सुनने के लिए श्रोता समूह उमड़ पड़ा। आपने 'एकता' पर ऐसा ओजस्वी व्याख्यान दिया कि पालीसंघ में एकता स्थापित हो गई, मनोमालिन्य दूर हो गया। पाली श्रीसंघ में हर्ष की लहर दौड़ गई। आपको पुनः पाली नगर में आना पड़ा। संघ ने इस खुशी में प्रभावना बांटी। ३५० बकरों को अभयदान दिया गया। गौओं के लिए घास का प्रबन्ध किया गया। इस एकता के शुभकार्य में पाली श्रीसंघ एवं विशेषकर श्री मिश्रीमलजी मुणोत का अथक सहयोग रहा। जैन-अजैन सभी लोगों पर आपके उपदेश का अचूक प्रभाव होता था।
बनी और मंगनी नाम की वेश्याओं ने आजीवन शीलवत पालने का नियम लिया और सिणगारी नाम की वेश्या ने एक पति-व्रत पालन करने का संकल्प किया।
पाली से विहार करके पोटिले पधारे। वहाँ से विहार करते समय ठाकुर अभयसिंहजी भी पहुंचाने आए। गुरुदेव जब पहले पधारे थे तब ठाकुर साहब ने श्रावण एवं भाद्रपद मास में मांस खाने तथा शिकार खेलने का त्याग किया था और अब आषाढ़ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक शिकार न खेलने का नियम लिया । ठाकुर साहब के छोटे भाई मसिंह जी ने भी न स्वयं शिकार करने का और न किसी दूसरे को शिकार बताने का नियम लिया।
आपश्री ने वहां से सैलावास की ओर विहार किया। मार्ग में शिकारपुर (मारवाड़) के ठाकुर साहब श्री नाहरसिंहजी की प्रार्थना पर प्रवचन दिया।
आपश्री जोधपुर पधारे । वहां की जनता आपसे परिचित थी। बड़े-बड़े अधिकारी भी प्रवचनों में आने लगे । आपका एक प्रवचन 'मनुष्य कर्तव्य' पर आहोर की हवेली में हुआ। उसमें लगभग ५ हजार श्रोता सम्मिलित थे। श्री ठाकुर उगरसिंहजी (सुपरिन्टेन्डेन्ट कोर्ट आफ वार्डस) श्री किशनसिंहजी (होम मेम्बर कौन्सिल स्टेट), श्री हंसराज जी (कोतवाल), श्री उदयराज जी (नायब कोतवाल) श्री मोतीलालजी (फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट), श्री रणजीतमल जी (वकील), श्री नवरत्नमलजी (भूतपूर्व मजिस्ट्रेट) श्री केवलचन्दजी (भूतपूर्व मजिस्ट्रेट) डा० अमृतलालजी, श्री सौनी प्रतापनारायणजी बार एटला, श्री काजी सैयद अली, श्री भभूतसिंहजी वकील आदि कई राज्य कर्मचारियों ने उपदेश का लाभ उठाया।
___ दि० १८ जनवरी १९२५ को 'ओसवाल यंगमेन्स सोसाइटी' के सभासदों के आग्रह पर आपने 'एकता' पर प्रेरक उपदेश फरमाया । सभा के सेक्रेटरी राय साहब ने किशनलाल जी बाफना ने निम्न नियम लिए
(१) मैं अपने स्वार्थ अथवा किसी आकांक्षा से कभी झूठ नहीं बोलूंगा । (२) साल भर में २४ दिनों के अतिरिक्त शोलवत पालूंगा । (३) अपनी रक्षा के अलावा किसी से ईर्ष्या-द्वेषवश क्रोध नहीं करूंगा ।
उनके सुपुत्र डा० श्री अमृतलालजी ने भी तास-चौपड़ आदि में समय खराब न करने, वृद्ध विवाह की सम्मति न देने, ओसवाल भाइयों की चिकित्सा बिना फीस करने, महीने में बीस दिन शीलवत पालने आदि के नियम लिए।
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