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:५३ : उदय : धर्म-दिवाकर का
| श्री जैन दिवाकर - स्मृति- ठान्थ ।
(३) किसान बैलों को नहीं जोतेंगे। (४) हलवाई भट्टी बन्द रखेंगे । (५) सुनार अग्नि सम्बन्धी कार्य नहीं करेंगे।
हातोद से अनेक स्थानों पर होते हुए आप रतलाम पधारे। वहाँ पूज्यश्री मुन्नालालजी महाराज के दर्शन किये। फिर वहाँ से सैलाना पधारे और सैलाना से पिपलोदा। पिपलोदा में प्रतिवर्ष माता के मन्दिर में एक बकरे का बलिदान होता था। आपके उपदेश से ठाकुर साहब ने वह बन्द करा दिया और स्वयं सूअर तथा शेर के अलावा अन्य पशु-पक्षियों का शिकार न करने का नियम लिया।
पिपलोदा से अनेक स्थानों पर विचरते हए मंदसौर पधारे। जनकपुरा और बजाजखाना के प्रवचनों से प्रभावित होकर पोरवाल बन्धुओं ने कन्या विक्रय न करने की प्रतिज्ञा ली। एक भाई ने (पिता ने) कन्या विक्रय के लिए कुछ रुपये ले लिये थे, और कुछ लेने बाकी थे। आपश्री के उपदेश से उसका हृदय बदल गया। उसने कहा-"जो रुपये ले लिए हैं वह रुपये भी लौटा दूंगा
और अब भविष्य में कन्या विक्रय का पाप सिर पर नहीं बाँधंगा।" सुनारों ने चाँदी में अधिक मिलावट न करने का नियम लिया।
मन्दसौर से आप पालिया होते हुए नारायणगढ़ पधारे । वहां के जागीरदार हफीजुल्लाखाँ ने आग्रह करके प्रवचन कराया। ठाकुर रणजीतसिंहजी, रघुनाथसिंहजी तथा चैनसिंहजी ने मदिरा तथा परस्त्री का त्याग किया। वहाँ से आप महागढ़ पधारे । महागढ़ में एक प्रवचन सुनकर अमावस्या के दिन किसानों ने हल न जोतने तथा वैश्यों ने दुकान न खोलने और कन्या विक्रय न करने की प्रतिज्ञाएँ ग्रहण की। ठाकुर भवानीसिंहजी, रणछोड़सिंहजी, कालूसिंहजी आदि ने जीवहिंसा का त्याग किया।
महागढ़ से अनेक स्थानों पर प्रवचन फरमाते हए आप इन्दौर पधारे।
इन्दौर में सर सेठ हक्मचन्दजी की धर्मशाला में आपश्री को ठहराया गया। व्याख्यान में जनाब मुंशी अजीजुर्रहमानखां बैरिस्टर, इन्स्पेक्टर जनरल पुलिस तथा जनरल भवानीसिंहजी आदि अनेक उच्च अधिकारी बराबर आते थे ।
यहाँ पर तपस्वी मयाचन्द जी महाराज ने ३५ दिन की तपस्या की। तप के पूर के दिन कसाइयों ने अपनी दुकानें व कसाईखाने बन्द रखे। स्टेट मिल के कन्ट्रक्टर सेठ नन्दलालजी ने भण्डारी मिल बन्द रखा । ३० हलवाइयों ने स्वतः की प्रेरणा से अपनी भट्टियाँ बंद रखीं । लगभग दो हजार दीनों और याचकों को भोजन कराया गया ।
एक दिन 'जीवदया' पर आपका सार्वजनिक प्रवचन हआ। सूनकर नजर मूहम्मद कसाई ने उठकर भरी सभा में प्रतिज्ञा की-'मैं कुरान-शरीफ की कसम खाकर कहता है कि आज से किसी भी जीव को नहीं मारूंगा।' कसाई के इस हृदय-परिवर्तन से सभी चकित रह गए। अन्य लोगों ने भी जीव हिंसा न करने की प्रतिज्ञा ली। श्री नंदलालजी भटेवरा की दीक्षा आपके कर-कमलों से सम्पन्न हुई।
पीपलगांव (महाराष्ट्र) के श्री सूरजमलजी हंसराजजी झामड ने दीक्षा में काफी धन खर्च किया।
इंदौर चातुर्मास पूर्ण करके आप तुकोगंज पधारे। यहाँ श्री नेमिचंदजी भंवरलालजी के आग्रह से माणिक भवन में ठहरे। प्रातः राय बहादर सेठ कल्याणमलजी की कोठी पर व्याख्यान
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