Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म मे तप
कहावत है
अमावस की रात आये वराती,
घर मे खाये ठोकर, न तेल, न वाती । तो तप रहित जीवन भी ऐसा मिट्टी का दीपक है, जिसमे न तेल है न वाती, वह किसी भी काम का नहीं, उसका कोई महत्व नहीं ।
जैसे फूल तो हो, पर उसमे मीठी सुगन्ध न हो, दीखने मे वडा सुन्दर लगे, आखें तो ललचाती रहैं, किन्तु जव नाक के पास लें तो वस, सुवह हो जाय ' न सौरभ न परिमल --जिसके लिए कहा जाता है:
रूप रूड़ो गुणवायरो
रोहीड़ा रो फूल नदी मे यदि जल न हो, अग्नि मे यदि तेज न हो, गाय को यदि दूध न हो, तो जैसे वे निरुपयोगी और सारहीन मानी जाती है, वैसे ही तप रहित जीवन-सारहीन, महत्वहीन, तेजोहीन और पृथ्वी का भा भूत माना जाता है । क्षत्रिय मे यदि तेज न हो, घोडे मे यदि तेजी न हो और साधक मे यदि तगस् की तेजस्विता न हो तो वे मिट्टी माने जाते हैं।
राजस्थानी मे कहावत है-दीधी पण लागी नहीं रोते चूल्है फूफ-चूल्हा ग्वाली पडा हो, ठडा पड़ा हो, देवता-अग्नि वुझ गयी हो, एक भी चिनगारी न हो और भोजन बनाने वाली बहन लकडियां डालकर फू-फू-फूक मारती रहे तो क्या होगा ? राख उडकर उलटी मुह पर ही तो आयेगी | आँखो मे राख भर जायेगी । न ज्योति जलेगी, न खाना पकेगा । एक नही, हजार लाख फूक भी वेकार है, ठडे चूल्हे पर ! इसी प्रकार तप अग्नि से शून्य जीवन-'ठडा जीवन है, खाली चल्हा है, उसे कितनी ही प्रेरणा दो, कोई लाभ नही !'
तप जीवन का प्राण है, जीवन का ही क्या, धर्म का, मस्कृति का, राष्ट्र का और समस्त विश्व का प्राण तत्व है। वैदिक ग्रन्यो में बताया गया है
तपसा वै लोक जयन्ति
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सतपय वाटाण ॥४।४।२७