Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप द्वारा पाप रूप जल आत्मा में आ रहा था उन छिद्रों को पुनः रोक देता है । जैसे नाव के छिद्र रोक देने से नाव में पुनः पानी नहीं भरता, घर की छत मादि वर्धा में चने लग जाती है तो उस पर सीमेंट आदि का प्लास्टर . करने से उनका टपका (चूना) बन्द हो जाता है। इसी तरह कृत पापों का प्रतिक्रमण कर लेने से व्रतों के सब छिद्र रुक जाते हैं और भात्म-भवन सुरक्षित हो जाता है। भगवान महावीर से गौतम स्वामी ने जब पूछा कि भगवन् ! प्रतिक्रमण करने से आत्मा को किस फल की प्राप्ति होती है, बागा को इससे क्या लाभ होता है ? तो भगवान महावीर ने बताया पष्टिरकरणे वर्याच्दाई पिहेइ-प्रतिक्रमण करने से व्रतों के दोष (अतिकम व्यतिगामअतिचार आदि) रूप जो छिद्र हो गये हों, वे पुनः बंद हो जाते हैं, उन छिद्रों का निरोध हो जाता है । छिद्रों का निरोध होने मे आश्रव का भी निरोप हो . जाता है। कर्म आने का रास्ता भी रुक जाता है।
तो प्रतिक्रमण का यह फल है कि इससे प्रतों की शुद्धि हो जाती है, कर्म माने के द्वार बन्द कर दिये जाते हैं, पाम द्वार (आश्रय) निरोध होने में फिर मुक्ति कितनी दूर रहती है ? अर्थात् धीरे-धीरे जीव मुक्ति गी और बदला जाता है।
दूसरी बात यह है ---प्रतिकमण करने से मनुष्य में आत्मनिरीक्षण की आदत पड़ती है, वात्मनिरीक्षण करने से साधक आत्म-दर्शन की ओर बहना है, वह अपनी भूलों को, दुर्बलताओं को दूर कर आत्मा को शुद्ध, गुरु गोर स्वः दना कमता है।
प्रतिमा मारने वाले के मन-वचन और राम में गिभेद-अन्तर, नहीं रहता। वन में एकरूपता आती है। जो बात मन में होगी की गई पान आगो, और यही बात उसले गम में मातारी ----पानी -
मन मेला, सन कजला कपटी घुगता भेर' ~ लाट, मा चुगला पति, थाहर भीतर पर कार्य प्रतिमा
है सालाना