Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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परावृत्य तप
४३१ उनके लिए जो महारता नेगी वह सुनने में आया कि गत नो या काम पहुंची,बहुत से स्वार्थी और सेवा की आड़ में पाप करने वाले लोग धीच ही में उन गरीबों और दुनियों की सहायता सामग्री से गादी बनाने लगे और अपने पर भरने में जुट गये। ऐसे जघन्य कल्प ननुम करता, भुरोको रोटी धीनकर अपनी नांदी बनाना चाहता है। दीन का पट काटकर अपनी पेटी भरने वाला---जितना बड़ा पार करता है, कितना जोन नाचरा करता है के लिए भागद कोई उपयुक्त नन्द नहीं होंगे।
तो सेवा करने में लोग रतिया व प्रसिद्धि की कामना नहीं होनी चाहिए । संधा-या गा, मंत्री वसलमा और विनय र बन्दुत्ल भावना से प्रेरित होकर होनी चाहिए।
पंचायत्य के इस प्रकार संधा-
यात सन्माध में न धर्म का मुना देवया या सर स्पष्ट कर दिया गया है। जो प्रानिमार को वा करना, प्रक जीर को नमामि गाना हमारा सिल किया लका भी मनमा पारेहम पापन निदान प्रतिमा व गाया मरेंगे । जो पहोगी हो बीमार छोइसर विचवा ....
रंगाबा का भारी
योगिनी
हि चाय
पम्प
अहा
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PIPAAdrraj..vpwnlaMg+Amriwarta