Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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ध्यान तप
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दोनों ही मन को एकाग्र करने के अमोघ साधन हैं । मन में जब-जव दुर्विचार और विकल्प आयें तब-तव स्वाध्याय में जुट जाय, ध्यान करने का अभ्यास करें तो मन उन दुर्विचारों से हटकर सद्विचारों में स्थिर हो सकता है । पुराने संत एक कहानी सुनाया करते हैं।
एक वेदान्ती ब्राह्मण था । छूआछूत का बहुत ही विचार रखता था । खास कर भोजन के समय यदि कोई उसके चौके को छू देता तो वह समूचा भोजन फैंक देता और या तो दिन भर भूखा रहता या फिर दूसरा भोजन बनाकर खाता । उसके कुछ मित्र थे जिनको वह कभी चोका छूने नहीं देता । उनकी छाया भी चौके में नहीं पड़ने देता । एक बार उन मित्रों ने ब्राह्मण की यह छूआछूत छुड़ाने के लिए उसे परेशान करना शुरू किया । जैसे ही वह खाना पकाकर हाथ मुंह धोकर खाना खाने बैठता, उनमें से एक मित्र आकर पूछता - पंडितजी आज क्या बनाया है ? देखें जरा हमें भी चखाओ और चह जवर्दस्ती चोके में घुसकर चौका भ्रष्ट कर देता । पंडितजी मन-ही-मन बड़बड़ाते रहते और विचारे दिन भर भूखे मरते । कई दिनों तक ऐसा ही होता रहा । पंडितजी परेशान हो गये । आखिर एक दिन उन्होंने किसी अनु भवी व्यक्ति से अपनी परेशानी बताई तो उसने एक उपाय बताया ।
दूसरे दिन पंडित जी ने खाना पकाकर हाथ मुंह धोये । एक बड़ी मोटी लट्ठी लेकर चौके में खाना खाने बैठे । रोज के अनुसार वह मित्र चौका छूने आने लगा तो पंडित जी ने लाठी हिलानी शुरू की— दूर रहो ! खाना खा रहा हूँ । लाठी देखकर मित्र वहीं रुक गया । वस, पंडित जी एक हाथ से लाठी हिलाते गये और एक हाथ से खाना खाते गये । दोस्तों ने आज चोका 'भ्रष्ट करने की हिम्मत नहीं की । पंडित जी ने खूब आनन्द के साथ भोजन कर लिया !
कहानी का सार यह है कि ब्राह्मण की तरह वह आत्मा है । पुराने दोस्तों की तरह काम, क्रोध, लोभ आदि दुविचार हैं। जब यह आत्मा भजन स्मरण रूप भोजन करने बैठता है तो दुविनार आकर उसके हृदय रूप चौके को अशुद्ध कर देते हैं, फलस्वरूप भोजन रुक जाता है । अब यदि ज्ञान, विवेक