Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप
राजा चन्द्रावतंस राज्य करते हुए भी बड़ा साधनामय जीवन जीता था । एक बार उसने किसी पर्व तिथि पर उपवास किया। रात्रि में कायोत्सगं करने का विचार कर महलों में ही एकांत स्थान पर जाकर खड़ा हो गया ।सामने एक दीपक जल रहा था, धीमे-धीमे टिमटिमा रहा था। राजा ने कायोत्सर्ग करने के साथ ही मन में संकल्प किया- "जब तक यह दीपक जलता रहेगा में कायोत्सर्ग में खड़ा अपना आत्मध्यान करता रहूंगा ।" कुछ समय बीता । राजा की परिचारिका दासी उधर आई। उसने सोचा- महाराज साधना कर रहे हैं, दीपक टिमटिमा रहा है, कहीं तेल खत्म न हो जाय, अंधेरा हो जायेगा, तो महाराज को कष्ट होगा । दासी ने तुरन्त दीपक को लबालब भर दिया, उसकी लो और तेज जल उठी ! दीपक जलता रहा तो
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राजा भी अपने संकल्प के अनुसार कायोत्सर्ग किये स्थिर खड़ा रहा । मध्य रात्रि का समय हो गया । दासीने सोचा - महाराज अभी तक सड़े हैं ! आज
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तक कभी इतनी देर खड़े नहीं रहे, जरूर आज कोई विशेष साधना कर रहे हैं, कहीं ऐसा न हो कि दीया गुल हो जाय, अंधेरा हो जाय ! दाती ने फिर दीये को छलाछल भर दिया। राजा अपने संकल्प के अनुसार खड़ा रहा उसके पैरों में भयंकर वेदना होने लगी, नसें फटने लगी, पर राजा इढ़ता के साथ अपने कायोत्सगं ध्यान में बड़ा रहा । बाहर वह तेल का दीपक जलता रहा, भीतर में उसके निर्मल भावों का दीपक जलता रहा, जैसे-जैसे तेल कम होता, दासी तेल भरती गई, राजा का संकल्प भी हु-हतर होता गया । उसने शरीर की असह्य वेदना से मन को हटा लिया । प्रातः पौ फटते-फटते दीपक का तेल सरम होने आया इधर राजा के शरीर का तेल (शक्ति) नी प्रायः समाप्त हो चुका था, पैर सूज गये थे, यह घड़ान से भूमि पर गिर पड़ा और परम पवित्र ध्यान में देकर उच्च गति को प्राप्त कर लिया । के बल पर अपनी देह को, करने की स्थिति में भी पहुंच जाता है। जब तक शरीर के प्रति गत्वा नाक कोई भी साधना हर
तो इस प्रकार आप को