Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 624
________________ ५६२ जैन धर्म में तप (२) स्त्री अच्छे पुरुप को प्राप्त करने के लिए नियाणा करती है । ... (३) पुरुष अच्छी स्त्री को प्राप्त करने के लिये नियाणा करता है। (४) स्त्री किसी समृद्ध स्त्री को देखकर वैसी बनने का नियाणा करती है।.. (५) कोई व्यक्ति देवगति में उत्पन्न होकर अपनी तथा दूसरों की देवियों को .. वैक्रिय शरीर द्वारा भोगने का नियाणा करता है। (६) कोई व्यक्ति देव भव में अपनी देवी को विना वैक्रिय करके भोगने का नियाणा करता है। (७) कोई व्यक्ति देवभव में अपनी देवी को बिना वैक्रिय (मूल रूप से) भोगने का नियाणा करता है। (८) कोई व्यक्ति अगले भव में श्रावक बनने का नियाणा करता है। (8) कोई व्यक्ति अगले भव में साधु होने का नियाणा करता है । इन नौ नियाणों में से पहले चार नियाणे करने वाला जीव केवलि प्ररू-. .. पित धर्म को सुन भी नहीं सकता। पांचवे नियाणे वाला धर्म को सुन तो लेता है किन्तु समझ नहीं सकता, अर्थात दुर्लभबोधि होता है और बहुत काल तक संसार में परिभ्रमण करता है। छठे नियाणे वाला जीव जिन धर्म को सुनकर-समझ कर भी दूसरे धर्म की तरफ रुचि रखने वाला होता है । सातवें नियाणे वाला सम्यक्त्व प्राप्त कर सकता है अर्थात उसे धर्म पर श्रद्धा . तो होती है लेकिन व्रत बिलकुल नहीं ले सकता । आठवें नियाणे वाला श्रावक व्रत ले सकता है लेकिन साधु नहीं बन सकता है । नौवें नियाणे वाला . साघु . बन सकता है लेकिन उसी भव में मोक्ष नहीं जा सकता। २. भिक्षाचरी प्रकरण में पृष्ठ २५७ पर हमने अभिग्रह के ३० भेद बताए हैं। कहीं-कहीं बढ़ाकर ३२ भेद भी गिने गए हैं। वे अधिक दो भेद इस . . प्रकार है (१)--३१ पुरिमार्घ चरक दिन के पूर्वार्ध में भिक्षाचर्या करने वाला . (२)-३२--भिन्नपिण्डपात चरक-टुकड़े किए हुए पिण्ड (भोजन) को . . ग्रहण करने वाला।

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