Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 628
________________ जैन धर्म में तप छेद या तप रूप मासिक प्रायश्चित्त के दो भेद हैं — उद्घातिक और अनुद्घातिक । उद्घातिक मासिकप्रायश्चित्त दो प्रकार का है --भिन्नमासिक एवं लघुमासिक | भिन्नमासिक के जघन्य रूप में एक दिन निर्विकृति अर्थात् विगय का त्याग करना पड़ता है तथा उत्कृष्ट रूप में २५ दिन का तप या छेद स्वीकार करना पड़ता है । लघु मासिक में जघन्य पुरिमड्ढ करना (आधे दिन तक भूखा रहना) पड़ता है एवं उत्कृष्ट २७ दिन का तप या छेद होता है । ५६६ अनुद्घातिक का अर्थ गुरुमासिक है - इसमें जघन्य एकासन (दिन में एक ही बार खाकर रहना) और उत्कृष्ट ३० दिन का तप या छेद होता है । चातुर्मासिक एवं पाण्मासिक प्रायश्चित्त भी दो प्रकार के हैं— उद्घातिक एवं अनुद्घातिक अर्थात् लघु एवं गुरु । लघुचातुर्मासिक में जघन्य आयंम्बिल एवं उत्कृष्ट १०५ दिन का तप या छेद होता है तथा गुरुचातुर्मासिक में जघन्य एक उपवास व उत्कृष्ट १२० दिन का तप या छेद होता है । लघुपाण्मासिक में जघन्य बेला एवं उत्कृष्ट १६५ दिन का तप या छेद होता है । गुरुपाण्मासिक में जघन्य तेला एवं उत्कृष्ट १८० दिन का तप या छेद होता है । 2 मासिकादि प्रायश्चित्तों की जघन्यता एवं उत्कृष्टता दोपों की मन्दतातीव्रता तथा दोपी को परिस्थिति के अनुसार होती है । किसको किस प्रकार का प्रायश्चित्त देना - यह निष्यक्ष प्रायश्चित्तदाता के विचारों पर निर्भर है । किन-किन दोषों का सेवन करने से मासिक चातुर्मासिक एवं पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है, यह वर्णन निशीथ, बृहत्कल्प एवं व्यवहार सूत्र से जानने योग्य है । ८. पृष्ठ ४२३ पर विनय के तीन अर्थ किये गए हैं। यहां इतना और श्री समझना चाहिए कि विनय के वाचक तीन शब्द काफी प्रचलित है - १ यह विधि विशीय सुत्र के हस्तलिखित टत्वों के आधार पर दी गई है । देवें मोक्ष प्रकाश २५३.

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