Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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.. . जैन धर्म में तप . जिसने ममत्ववृति का त्याग कर दिया है उसने समस्त संसार का त्याग कर दिया । वास्तव में उसी ने मोक्ष का मार्ग देखा है, जिसके मन में किसी . भी भौतिक वस्तु के प्रति, शरीर के प्रति भी मेरापन-ममत्व नहीं है। विश्व में सबसे बड़ा बन्धन एक ही है-ममत्व ! परिग्रह ।
नस्थि एरिसो पासो पडिबंधो अत्यि सव्व जीवाणं' . . जीव के लिए ऐसा पाश-बंधन और प्रतिबंध संसार में दूसरा नहीं है जैसा यह परिग्रह अर्थात् ममत्व है ! इस ममत्व-बुद्धि का त्याग कर देने .... वाला ही सच्चा साधक व सच्चा तपस्वी हो सकता है । ___ ममत्व वुद्धि का परिहार करने के लिए अनेक साधन व उपाय बताये गये हैं उनमें ही एक मुख्य साधन है-व्युत्सर्ग !
व्युत्सर्ग-आभ्यन्तर तपों की श्रेणी में छठा व अन्तिम तप हैं। इस ता . की साधना जीवन में निर्ममत्व की, निस्पृहता की और अनासक्ति एवं निर्भयता की ज्योति प्रज्ज्वलित करती है। साधक में आत्मसाधना के लिए अपूर्व साहस और बलिदान की भावना जगाती है।
व्युत्सगं को परिभाषा व्युत्सर्ग-~में दो शब्द हैं वि-उत्सर्ग । वि का अर्थ है विशिष्ट और उत्सर्ग . का अर्थ है-त्याग । विशिष्ट त्याग, अर्थात् त्याग करने की विशिष्ट विधि-. व्युत्सर्ग है।
माशा और ममत्व जीवन का सबसे बड़ा बंधन है। यह आशा, ममत्ल नाहे धन का हो, परिवार का हो, शिष्यों का हो, भोजन आदि रसों का हो, .. पा अपने शरीर कता ही हो, बंधन है, मोह है और जब तक वह नहीं घुटनामुक्ति नहीं मिल सकती । व्युत्सर्ग में इन सब पदायों के मोह का लाग लिया जाता है, उनके प्रति, यहां तक कि शरीर व प्राण के प्रति भी मोह त्याग .. दिया जाता है, सर्वर सर्वदा-निममत्व भाव की पवित्र भावना से मामा हो बलिदान के लिए तैयार किया जाता है। दिगम्बर आचार्य अल .. . बरस की परिभाग करते हुए लिखा है-..
२ प्रनम्माकरण