Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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चार पदों की अपेक्षा ज्ञान, दर्शन आदि पदों की स्थापना से ध्यान में आलम्बन अधिक सुदृढ़ बनता है। इसकी स्पष्ट कल्पना के लिए मंलग्न चित्र देखिए
ध्यान तप
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णमो
तवस्स
महात
णमो सिद्धाणं
णमो अरिहंताणं
ܩܢ
सिद्धचक्र
णमो
णाणस्स
आयरियाणं
णमो
दसणरस णमो
इसी प्रकार अन्य मंत्राक्षरों पर किसी आकृति की कल्पना बनाकर उनका ध्यान भी किया जाता है । इसमें आगम के किसी पद पर भी ध्यान टिकाया जा सकता है । चत्तारि मंगलं, ऊं, हों आदि मंत्रों पर भी ! इनका स्मरण व जप करना स्वाध्याय में गिना जाता है, किन्तु उन पर चितन करना विचार प्रवाह को एक धारा में ही प्रवाहित किये रखना ध्यान है ।
अक्षर ध्यान
सिद्ध चक्र की नोति अक्षर ध्यान में भी कल्पना के आधार पर अक्षरों की स्थापना की जाती है । उन अक्षरों पर नगद स्वरूप की कल्पना करके चितन किया जाता है। अक्षर का अर्थ है कभी नष्ट नहीं होने वाला अविनाशी ! अविनानी तत्व एक ही है-आमा ! बुद्ध स्वरूप स्थित