Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप ... सकता है, धूए को भी वाँधा जा सकता है । देवता और इन्द्र आदि को भी. अपने अधीन किया जा सकता है किंतु मन को काबू में करना बहुत कठिन है । वहुत ही मुश्किल है । गणधर गौतम ने इसे दुस्साहसिक दुष्ट अश्व कहा है जो अनियंत्रित दौड़ लगा रहा है और श्रीकृष्ण ने इसके निग्रह को वायु को पकड़ने से भी अधिक कठिन बताया है । संसार के बड़े-बड़े योद्धा मन से हार गये हैं और मन को वश में करने का मार्ग खोजते आये हैं। आज भी लोग.. पूछते हैं-"महाराज ! इस मन को वश में कैसे करें ? सामायिक करते हैं, स्वाध्याय करते हैं, पूजा करते हैं किन्तु मन तो दुनियां भर में भटकता रहता है। इसको एकाग्र करने का क्या उपाय है ?"
__ मानसिक एकाग्रता का साधन वास्तव में साधना में जब तक मन एकाग्र नहीं होता तब तक आनन्द नहीं आता । क्योंकि बाहर में जब मन की दौड़धूप रुकेगी तभी भीतर में शांति की, आनन्द की हिलोर उठेगी। तो आज हमें इसी बात पर विचार करना है कि तपस्या के विविध अंगों की साधना-आराधना में मन को वश में करने की क्या विधि है ! मन को वश में करने की विधि पर विचार करते हैं तो गीता का यह सूत्र हमारे सामने आ जाता है
अभ्यासेन तु कौन्तेय ! वैराग्येण च गृह्यते ।" हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! यह मन दो प्रकार से वश में किया जा सकता है अभ्यास के द्वारा और वैराग्य के द्वारा। अभ्यास का अर्थ है एकाग्रता की साधना और वैराग्य का अर्थ है--विपयों के प्रति विरक्ति । एकाग्रता के अभ्यास व विषय-विरक्ति के द्वारा मन को काबू में किया जा सकता है । ___ भगवान महावीर से भी जब मन को स्थिर करने का उपाय पूछा गया तो उन्होंने दो उपाय बताये हैं--सज्झाय झाण संजते स्वाध्याय और व्यान से युक्त मुनि अपने मन को स्थिर रख सकते हैं। स्वाध्याय और ध्यान-ये
१ नगवद् गीता ६३५ २ उत्तराध्ययन