Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप. द्वारा पढ़ा जाता है और उनकी स्तुति-प्रार्थना में तन्मय होकर साधक अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है।
मन को स्थिर व तन्मय बनाने के लिए, अशुभ विचारों से हटाकर शुभ .. विचारों में लीन होने के लिए जो जप किया जाता है-वह वीतराग साधना है, निष्काम जप है । और किसी कामना व सिद्धि के लिए इप्टदेव का जप करना सराग-साधना है, सफाम जप है ।
जप करने की विधि के अनुसार उसके तीन भेद और भी है
१ मानस जप-मंत्र, पाठ,स्तोत्र आदि का चिन्तन करते समय मन-हीमन अक्षरों व पदों की आवृत्ति करना- मानस जप है । मानस जप में शब्द .. होठों पर नहीं आने चाहिए, सिर्फ मन के भीतर ही उसकी ध्वनि उठे और . वहीं विलीन हो जाय-मन उसी में रमता चला जाय-उस दशा को मानस जप कहा जाता है । यह सबसे श्रेष्ठ जप विधि है । ___ २. उपांशुजप- मंत्र आदि की ध्वनि भीतर से उठकर होठों तक आकर टकराती है, जीभ भी स्पंदित होती है, हिलती है, किन्तु शब्द होठों से बाहर निकल कर किसी दूसरे को सुनाई नहीं देते, सिर्फ उस मंत्र की ध्वनि अपने .. कानों तक ही पहुंच पाय-इतनी धीमी आवाज से पाठ करना --उपांशु जप .. है । यह जप की द्वितीय विधि है। .
३. भाष्य जप-शब्दों व मंत्र-श्लोक आदि का खूब जोर-जोर से . उच्चारण किया जाता है । यह एक प्रकार का सामूहिक रूप ले लेता है, जैसे प्रार्थना आदि सब लोग मिलकर गाते हैं, स्तोम आदि उच्च स्वर से सुनाये जाते हैं । जप के विशेष अभ्यासी आचायो का कथन है-माप्य जग साधारण श्रेणी का जप है। उपांशु जप में इससे सौगुना फल मिलता है तया । मानस जप में हजार गुना !
जप में द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव का भी बहुत विचार किया जाता है । जप करते समय सादे व स्वच्छ वेश में रहना चाहिए, सूत की या लकड़ी की
गाला रसना चाहिए, स्वच्छ और शांत स्थान में बैठना चाहिए । प्रात:कात ... का या संध्याकाल का उपयुक्त समय होना चाहिए, शरीर चिन्ताओं से निवृत्त