Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रायश्चित्त तप
बाले के जीवन में नहीं टिक सकता। क्योंकि वह किसी दूसरे घर से, लालच या दवाव से प्रतिक्रमण नहीं करता, किन्तु आत्मा को शुद्ध पारने में लिए ही करता है, जो मूल होती है उसे सच्चे दिल से स्वीकार करता है
और उसे दूर करने का भी प्रयत्न करता है । यह एक बार नहीं, किन्तु दिन में दो यार इस एकरूपता की साधना करता है। दिन में होने वाली समस्त मूलों को सायंकालीन प्रतिक्रमण के समय दूर हटागार जीवन तो पवित्र व सम-रूप बनाया जाता है और रात में होने वाली भूलों को प्रातःकालीन प्रतिक्रमण के समय दूर कर जीवन की विविधता व अनेराता पिटाई जाती है । मन-वचन-गम की एकरूपता प्राप्त की जाती है। जीवन में जहां-जहां उसे दोष, अनेकता मे याग दिखाई देते हैं उन्हें आत्मालोचन मे जल म घो-धोकार सम्पूर्ण वस्त्र को एकदम स्वच्छ व निर्मल बना लेता है।
प्रतिरमण को जीवन की शायनी कहा जा सकता है। जीवन का बही. साना पहा मा समता है। जैसे लोग अपनी पारी में मानवारी साय रोज-मर्ग को पटनाएं नियते है,फिर उन पर चितन करते है जो भूल प्रतीत होती है, गलतिया लगता है, उन्हें सुधारने का प्रबल करते हैं । यही-गाते में नाम और हानि का हिमायलिना जाता है, पिन हानि होने के नाम पर विधार गार बार रशिया जाता है, और लाभ कमाने का प्रयत्न भी प्रति
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