Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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विनय तप
है । कहा जाता है कि यूनान का दार्शनिक एवं यूनानी राजनीति का गुरु अरस्तु इस सिद्धान्त का कट्टर समर्थक था कि समाज एवं राष्ट्र का नेतृत्व शानी जनों के हाथ में रहना चाहिए। उसका यह कथन आज भी प्रसिद्ध है कि "शासक को दार्शनिक ( विद्वान ) होना चाहिए और विद्वान दार्शनिक को ही शासन सूत्र संभालना चाहिए ।"
ज्ञानी का विनय होने से संध में ज्ञान की महिमा बढ़ती है, ज्ञान का आदर होता है एवं ज्ञानाभ्यास के प्रति सर्व साधारण का आकर्षण बढ़ता है । जो संघ राष्ट्र ज्ञानी का आदर करता है, वहां अपने आप हो ज्ञान का विस्तार होता रहता है ! आज के युग में तो यह बात और भी स्पष्ट हो रही है।
प्राचीन काल में पहूदी जाति में ज्ञानी लोगों का बड़ा सम्मान होता था, उन्हें अनेक सुखसुविधाएं दी जाती, उनका पूरे देश में सम्मान किया जाता। यही कारण है कि आईस्टीन जैसा विश्वविख्यात वैज्ञानिक उस जाति मे पैदा हुआ, और भी अनेक वैज्ञानिक लेखक, विद्वान बहूदी जाति में पेश हुए है। इजरायल छोटासा देव भी कितना अग्रगामी और शक्ति है ?
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दाका कारण है वहां आज भी विद्वानों का सम्मान होता है।
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उनकी गौरव प्रदान दिया है।
भी मुख्य रन नही साहित्यकारों का बार किया है
भारत के प्राचीन कवियों की पानी में आप कते है कि जमु आणि
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नेतोक कहा और राजा ने गाव कचोन कर दिए। कारावास इतने
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