Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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विनय तप
श्रमण माहन के पास एक भी आयं सुवचन यदि सुनने को मिलता है, तो वह सुनकर (हित शिक्षा का एक भी बोल पाकर) उसे पूज्य बुद्धि के साथ नमस्कार करना चाहिए, उसका सत्कार सन्मान करना चाहिए।"
तो यह है गुरु के प्रति, हितशिक्षक के प्रति कर्तव्य का निदेश ! विनय की विधि ! शास्त्र में यहाँ तक कहा है
जस्ततिए धम्मपयाई सिरसे तस्संतिए वेगइयं पउजे जिससे धर्म का एक पद भी सीखने को मिले तो उसका विनय, सत्कार करना चाहिए । शिर झुगा कर, हाथ जोड़कर आदर सूचक वचनों से उसका अभिवादन करना चाहिए।
भान विनय के, जानी पी अपेक्षा से पांच भेद किये गये हैं-जैसे मति शानी का विनय, श्रत बानी का विनय, अवधिज्ञानी का विनय, मनःपय शानी का विनय एवं कवलनानी का विनय !
दर्शन विनय और अनाशातना दन विना का अर्थ है, सम्यक विचार रूप-रावा नादर, सम्यष्टि गुरुजनों का सम्मान, सेवा आदि करना । इसके भी दो भेद है -~-१, गुध मा दिनय नया २ अनागातना पिनय।
मन विनय ए.6 प्रकार शिष्टता, सभ्यता एवं सपहार की कुशी है। इसके अनुमोदन गनुमा गुरुजनों का दिन एवं स्नेह नाम सा नाही है, मामी एक अज्ञात व्यावहारिक एवं मोदप्रियानी भी बन सरता। पातिक भूध में प्रकार बताये है-'मलबा आदिबाने पर Emmननिए मामा REET देना, न पारि
मुत्रो का मान करना, नरेश ला. ना. को ना बोहरला
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