Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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विनय तप
आभ्यन्तर तप का दूसरा भेद 'विनय तप है। विनय का सम्बन्ध हृदय से रहता है। जिसका हृदय सरल और कोमल होता है वही गुरुजनों का विनय कर सकता है। इससे अहंकार का नाम होता है, अहंकार को 'स्वधता' कहा गया है जिसका अर्थ है-पत्र के जैनी कठोरता जाता है पर
सोना ? नाहे जितना
उसमें
ता होती है
होता है।
बुळता नहीं, क्योंकि उसमें कोमलता नहीं होती। घुमा चाहे जिस आकार में बाल तो मुलायम होती है इसीलिए उसका मुल्य भी शक्ति काम भी कोमल होता है उसकी वाणी भी कोमल होती है, और वरीर भीनम, एवं सभ्यता के नियमों के अनुकूलता है। उसके में, उ बैठने से से नवयवन तीनो में जी मृदुता, कोमलता और सरलता को नपुर गुफा महीती है।
नहीं होती
विनय को य कहा
एक समय हो सकता है
वारसदार है मे
ऐसी होन की पट्टी बाव है जिसे तब को देवी में या जाति वी वगैर मन ही पता है
नानी के