Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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विनय तप
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आत्मसंयम व शोल इसी अध्ययन में विनय के नाम से आत्मसंयम एवं शील सदाचार की भी शिक्षा दी गई है जैसे--
अप्पा वेव दयेमव्यो...........1
वरं मे अप्पा दंतो संजमेण तवेग यो जारमा का दमन करना चाहिए पोंकि आत्मा पर कम करने वाला योनों लोक में सुती होता है। इसलिए अच्छा है कि मैं स्वयं की विधक बुद्धि से अपना नियंत्रण, संयम एवं तप केद्वारा स्वयं ही करता र मनापासार लोग बध-बंधन द्वारा मुझे मारने नियंत्रण में रखेंगे।
यह आत्मानुभागन-आमसंयम की शिक्षा नी विनय को नि ... स्पोजिपिनो आत्मा ही आत्मसंयम कर मरता है । गुगजनों का अनुमापन कभी माना जा सकता है, जब पहले मन पर अनुशासन हो, क्योंकि जानी कभी मन के, अपनी इच्छा व गति के प्रतिकून बाद को स्वीकार महिना होती है. हो मनको साधता जाए व जाटिन गोबरली जाती है।
नियतील शक्ति पाने, गद प्रापरतों में साकार . भी ना करता है, इसलिए उने नाममा गया है। यदि मामा करने की बात कही गई है-हिरिमं पदिलो मुधिोए ति