Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तप और लब्धियां
संहज प्रभाव होता है, और वह शुद्ध आध्यात्मिक ही होता है, उसमें मंत्रतंत्र का कोई पुट नहीं होता है ।
(२०) कोष्ठक बुद्धि लब्धि - जिस प्रकार कोठे में डाला हुआ धान्य बहुत काल तक ज्यों का त्यों सुरक्षित रह जाता है, इसी प्रकार जिसे कोष्ठक बुद्धि लब्धि प्राप्त होती है वह आचार्य आदि के मुख से सुना हुआ सूत्र अर्थ, तथा अन्य जो भी तत्त्व सुनता है उसे ज्यों का करने में समर्थ होता है । इस लब्धि प्रभाव से बन जाती है :
त्यों अविकल रूप में धारण बुद्धि स्थिर धारणा वाली
(२१) पदानुसारिणी लब्धि - इस लब्धि के प्रभाव से सूत्र के एक पद को सुनकर आगे के बहुत से पदों का ज्ञान विना सुने ही अपनी बुद्धि से कर लेता है । जैसे कहा जाता है— एक चावल के दाने से पूरे चावलों के पकने का पता चलता है, एक बात सुनते ही पूरी वात का ज्ञान हो जाता है । इसी प्रकार एक पद से अनेक पदों का ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता इस लब्धि धारी होती है ।
(२२) वीजबुद्धि लब्धि - जैसे वीज विकसित होकर विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लेता है, उसी प्रकार वीज बुद्धि लब्धि के प्रभाव से एक सूत्र, व अर्थ प्रधान वचन को ग्रहण कर अपनी बुद्धि से उसके सम्पूर्ण सूत्र व अर्थ का ज्ञान कर लिया जाता है । यह लब्धि गणधरों में सर्वोत्कृष्ट रूप से होती -बस इन तीन है | तीर्थकर देव के मुख से सर्वप्रथम उत्पाद व्यय धौव्य रूप त्रिपदी का ज्ञान प्राप्त करते हैं—उप्पन्ने इ वा विगमे इ वा धुओ इ वा पदों को सुनकर ही संपूर्ण द्वादशांगी का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और वारह अंगों की रचना भी ।
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( ३ ) तेजोलेश्या लब्धि - यह आत्मा की एक प्रकार की तेजस् शक्ति हैं । इस लब्धि के प्रभाव से योगियों को ऐसी शक्ति प्राप्त हो जाती है कि कभी क्रोध आ गया तो वे वायें पैर के अंगूठे को घिसकर एक तेज निकालने है जो अग्नि के समान प्रचंड होता है, और विरोधी को वहीं जलाकर भस्मसात् कर डालते हैं । इस शक्ति से कई योजनों तक में रही हुई वस्तु को