Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
+
जैन धर्म में
मिले वही विष्ठा दे । सहेली देखकर चक्ति हो गई कि पूरे आराम में उसके गलीचे से भी बहुत कीमती और मुलायम गलीचे विछे है। आखिर उसके आग्रह पर एक पैर पोंछने का स्थान खाली कर वहां का गोवा
वाया गया |
ܘ ܚ ܕ
उक्त प्रसंग से हमें पता चलता है भिक्षुओं के बिहार उस समय राजप्रासादों से होड़ लेने लग गये थे। सुस-सुविधा के आराम के अनेक साधन यहां जुटाये जाते होंगे और फलस्वरूप भिक्षुओं में सुरागोलता भी बढ़त गई होगी, इसके विपरीत भगवान महावीर ने ऐसे स्थानों पर रहने का स्पष्ट निषेध किया है
मनोहरं चित्तहरं मल्लवणवासियं । सवाई पंडतोयं मणसा दिन पत्याए । '
-मुनि ऐसे आवास की मन में भी इच्छा न गरे, जो मनोहर ही. चित्र आदि से सज्जित हो, माना और धूप से सुगन्धित हो, तथा क सहित एवं श्वेत चंदवा हो। क्योकि ऐसे स्थानों परहने से यह आराम हो सकता है तक ध्यान और समाधि से दूर जायेगा। इसमें भोग की भावना भी जग सकती है। अतः भगवान महावीर ने
1
गापना की और असर करने के लिए
रोका त्याग कर
है यहां आराम से रहने के बाद कोई साधन उपलब्ध नहीं होते थे। निश्चित ही मथुराष्ट महिष् करी और उनमें वो भावना बढती जाती। माधु + साने गोगा दिन सपानका नाम निर्देशों से आता है उनमें क श्री जो मिरपर
यह
होने वा पराशर मुना मनतात एat है
पता है कि
पण गोड वार पर से
firm होता की विदिषनाग के
और
की
के ऐसे स्थानों का निवेश किया
यह गोभी
और