Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में राम रोज की अपेक्षा आज उसकी लकड़ी दुगुने भावों में विकी। दूसरे दिन यही सत्पुरुष मिला । उसने फिर यही बात माही-"कुछ आगे बढ़ो !" माहि.. यारा और मागे गया, आज और अच्छी लकड़ी मिली। बों रोज-रोज बा आगे बढ़ता नपा, अब उसे बढ़िया इमारती लगाड़ियां मिलने लगीं। ... भारी में ही उसे महीने भर की कमाई होने लगी। सत्पुरुष ने फिर से एक दिन प्रेरणा दी । रुको मत ! और आगे बढ़ो ! कठियारा जंगल में राय दूर चला गया । आज उसे नन्दन के वृक्ष मिले । उसने जगोही वृक्ष को गाटा, मारा जंगल चयन की मार से महक उठा । कटियारा बहुग प्रान्न भा। . एक भारी बांधकर यह ले गया और बाजार में देना तो बस उसके जन्मभरः । को दरिद्रता दूर हो गई !
एक आदमी समुद्र के किनारे बैठा सोपं और मंतिए बीनता रहता। बाजार में उसे थेचमा नार-: आने मामा लेता और नने नयाभर अपना पेट भर लेता । एक दिन गिलो सत्पुरष ने उसे पूछा-समुद्र मे किनारे. मंठे । जया करते हो?
उसने महा-- मी और पतिए बटोरता है ? गाय से? या तो मेरा पुस्तौनी घंशा है ! पानी मात्र में गहरे नही जार?
मकाने -- म उनी ! देगा तो हो !
मनट में पानी उगा। उसे काही मुलायान मार मारे गियों !
भिगो । म फिर भी मरने . ETAIL ना गया । समुह है गर्भपान मारे दिम नमः Itant
म और ईमरम गों को बीमा ! ----
freifer पाया गहरे पानी पंछ। में ओपो हो सारे .