Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रतिसंलीनता तप
- प्रिय-अप्रिय व्यवहार को, वचन को सहन करके क्रोध को असत्य करना चाहिए । अर्थात् क्रोध आ जाये तो उसे फलहीन कर डालना चाहिए। क्रोध का फल है - हिंसा ! क्रोधी व्यक्ति दूसरे की भी हिंसा करता है और अपनी भी। जितनी हत्याएं, व आत्महत्याएं होती हैं उनमें मुख्य कारण क्रोध ही रहता है।
क्रोध को विफल कैसे करें ? मनोविज्ञान की दृष्टि से क्रुद्ध मनुष्य एक दम हत्याएं करने पर उतारू नहीं होता । क्रोध का वेग जैसे-जैसे प्रवल होता है वैसे-वैसे मनुष्य आगे उत्तेजना पूर्ण अवस्था में पहुंचता रहता है। उत्तेजना का आखिरी रूप है हत्या । हत्या, क्रोध की चौथी व अंतिम श्रेणी (परिणति) है। क्रोध की चार परिणतियां ये हैं
१ सर्वप्रथम क्रोध आने पर मनुष्य का शरीर कांपने लग जाता है, हाथ पर फूल जाते हैं, सांस तेज हो जाती है, आंखें लाल-लाल अंगारों सी जलने लगती है, वाणी लड़खड़ाने लगती है।
२ क्रोध की दूसरी अवस्था में मनुष्य हाथ पैर पीटने लगता है, अपना सिर फोड़ लेता है, कपड़े फाड़ लेता है, शरीर को नोंच डालता है। बकवास व गाली गलौज करने लगता है।
३ तीसरी अवस्था में मारपीट करने लगता है, तोड़-फोड़ करने पर उतार हो जाता है, आग लगा देता है, दूसरों का नुकसान करने लगता है।
४ क्रोध की चौथी दशा है-हत्या ! जिस पर क्रोध माता है उसकी हत्या करने पर उतारू हो जाता है, वह नहीं मिले तो उसके सम्बन्धी जनों की हत्या कर डालता है, कभी-कभी हत्या करने पर भी उसका क्रोध शांत नहीं होता तो वह आत्महत्या भी कर लेता है। बहुत से व्यक्ति प्रोधोन्मत्त होकर साधनों के अभाव में, भय आदि के कारण दूसरों की हत्या नहीं करते किन्तु वे क्रोधोन्मत्त हुए अपनी ही हत्या (आत्म हत्या) कर लेते हैं ।
क्रोध को अफल-- करने का अर्थ है-यदि शोध का उदय होगया है, प्रथम दणा में शोध पहुंच गया है तो अब उसे दूसरी नवत्या में पहुँचने से