Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रतिसंलीनता तप
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फट जाता है, वैसे ही कपटाई से मन फट जाते हैं। कपटी मनुष्य किसी का मित्र हो ही नहीं सकता। यहां तक कि भगवान भी कपटी से मित्रता नहीं रख सकते । और न उसका विश्वास भी कर सकते हैं ?
___ माया के दुष्फल शास्त्रों में माया को शल्य कहा है, जैसे तीखा कांटा, भाला व तीर शरीर में चुभ जाता है तो उसकी पीड़ा समूचे शरीर में कसकती रहती है,दर्द सालता रहता है, वैसे ही कपट करने वाले की आत्मा में-किया हुआ कपट कांटे की तरह सालता रहता है । न केवल इस जन्म में ही, किन्तु-जन्म-जन्म में । सूत्र में यहां तक बताया है कि मास-मास खमण की तपस्या करने वाला भी यदि माया कपट करता है तो उसे तपस्या का सुफल मिलना तो दूर रहा, किन्तु उलटा अनन्त-अनन्त जन्मों तक वह संसार में दुःखों को भोगता है
जे इह मायाई मिज्जइ आगंता गन्भाय गंतसो ।' माया के तीन दुष्परिणाम बताये गये हैं
१ मित्रता का नाश - २ विश्वास का नाश
३ परलोक में दुर्गति माया कपट करने वाले की गति-परलोक विगड़ जाता है । शास्त्र में कहा है-माया गई पडिग्घामोरे--माया से सद्गति का नाम होता है । आचार्य उमास्वाति ने कहा है माया तैयंग योनस्य-माया तिर्यच गति को देने वाली है, पशु वांके होकर तिरछे चलते हैं इसका कारण है, माया का दुप्फल ! 'तिर्यच गति के चार कारणों में प्रथम दो कारण माया के ही बताये हैं-माइल्लयाए नियडिल्लयाए-माया कपट करने से, धूर्तता पूर्ण व्यवहार करने से प्राणी मरकर तिर्यच योनि में जन्म लेता है।
१ सूमकृतांग ।। .२ उत्तराध्ययन ६।५४ ३ तत्त्वार्य नूम ६।२७ ४ स्थानांग ४१४ . .