________________
प्रतिसंलीनता तप
३४५
फट जाता है, वैसे ही कपटाई से मन फट जाते हैं। कपटी मनुष्य किसी का मित्र हो ही नहीं सकता। यहां तक कि भगवान भी कपटी से मित्रता नहीं रख सकते । और न उसका विश्वास भी कर सकते हैं ?
___ माया के दुष्फल शास्त्रों में माया को शल्य कहा है, जैसे तीखा कांटा, भाला व तीर शरीर में चुभ जाता है तो उसकी पीड़ा समूचे शरीर में कसकती रहती है,दर्द सालता रहता है, वैसे ही कपट करने वाले की आत्मा में-किया हुआ कपट कांटे की तरह सालता रहता है । न केवल इस जन्म में ही, किन्तु-जन्म-जन्म में । सूत्र में यहां तक बताया है कि मास-मास खमण की तपस्या करने वाला भी यदि माया कपट करता है तो उसे तपस्या का सुफल मिलना तो दूर रहा, किन्तु उलटा अनन्त-अनन्त जन्मों तक वह संसार में दुःखों को भोगता है
जे इह मायाई मिज्जइ आगंता गन्भाय गंतसो ।' माया के तीन दुष्परिणाम बताये गये हैं
१ मित्रता का नाश - २ विश्वास का नाश
३ परलोक में दुर्गति माया कपट करने वाले की गति-परलोक विगड़ जाता है । शास्त्र में कहा है-माया गई पडिग्घामोरे--माया से सद्गति का नाम होता है । आचार्य उमास्वाति ने कहा है माया तैयंग योनस्य-माया तिर्यच गति को देने वाली है, पशु वांके होकर तिरछे चलते हैं इसका कारण है, माया का दुप्फल ! 'तिर्यच गति के चार कारणों में प्रथम दो कारण माया के ही बताये हैं-माइल्लयाए नियडिल्लयाए-माया कपट करने से, धूर्तता पूर्ण व्यवहार करने से प्राणी मरकर तिर्यच योनि में जन्म लेता है।
१ सूमकृतांग ।। .२ उत्तराध्ययन ६।५४ ३ तत्त्वार्य नूम ६।२७ ४ स्थानांग ४१४ . .