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जैन धर्म में तप तुरन्त पहचान लेता है, किन्तु माया को पहचानना बड़ा कठिन है। यदि पहचान लिया तो फिर माया ही कैसी ? अत: माया को गूढ़ दोग बताया है । मायावी अपने भावों को छिपाकर ऊपर से बड़ा सीधा सादा, मधुर भाव प्रदर्शित करता है, उसके लिए कहा है
मुख ऊपर मिठास, घट मांहि खोटा घड़े . इसलिए माया को समझ पाना कठिन है, यह जितनी गढ़ है, उतनी ही अधिक पापानुवन्धी है। गांधी जी कहते थे-'दंभ (माया) झूठ की उजली पोशाक है ।' असत्य स्वयं नंगा होता है, माया की उजली पोशाक पहन कर वह सभ्य समाज के वीच बैठने लायक हो जाता है। धर्म ग्रन्थों में गाया को अत्यन्त निकृष्ट व धर्म को नष्ट करने वाली बताई गई है
माया फरण्डी नरफस्य हण्डी ।
तपो विखण्डो सुरतस्य भण्डी । माया नरक की पिटारी है, तप को गापित करने वाली और धर्म को बदनाम करने वाली है।
स्वार्थ साधने के लिए, विपण वासना की पूर्ति के लिए, दूसरों से सत्ता अधिकार मादि हड़पने के लिए आज माया का पुलम-पला प्रयोग हो रहा है। आज की राजनीति-माया कपट, छन-छदम, धोरा और फरेय को एक जीती जागती तस्वीर है। मनुष्य कितना गूढ़ प कितना दंभी हो रहा है। क्षण-क्षण में कितने ब, कितने चेहरे बदलता है और निरानी बोलियां बोलता है-महानती गाजनीति को गंदी नीति में देगा जाता । मी दंग व पूर्तता कारण आज कोई मिली का पियार नहीं करता। कोई किगी मा मित्र नहीं मा । मामा-मी सेजनी है, जिसकी पहली भार में मिता के मन को जात, धीर सरी पार में मिलायनि-निपहें होकर वितार । नीलिए भगवान महावीर भामाm पितानि नामे - निता मा ना भारती पाटा