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जैन धर्म में तप एफ हड्डी ने पांव से लिपट फर यूं कहा
अरे देख के चल ! हम भी कभी इन्सान थे। तो शरीर, धन,मादि की अंतिम दशा यह होती है ! फिर किस बात का अहंकार ! प्रभुता में रावण जैसे भी समाप्त हो गए। सनत्कुमार जैनों का रूप भी क्षण भर में विकृत हो गया तो फिर तेरी क्या विसात है ? इस प्रकार धन-यौवन वल-वैभव आदि की असारता का अनुभव पर मनुष्य को चाहिए कि वह हृदय को निरभिमान, विनयशील बनाए ।
अभिमान को जीतने का पहला उपाय है, जिन कारणों से मन में अभिमान जगे उन कारणों की असारता एवं क्षणभंगुरता का विचार करें।
अभिमान के समय अपने से ऊंचे व्यक्ति को देरो, जो यंगर य शाग आदि में अपने से अधिक हुए हैं उनका विचार करे । यदि ज्ञान का अहंकार माता है तो सोचिए क्या आप गौतमस्वामी से भी अधिक बड़े शानी ? बुद्धि व नातुर्य का महंगार जगता है तो सोनिए-~या आप अभागार व चाणक्य से भी अधिक बुद्धिमान व चतुर है ? तप का अभिमान उमरता है तो विचार करिए---नागा धन्य अणगार से भी अधिक उा नपस्वी आप है ? क्या शालिभद्र से अधिक वैभवशाली, बाहयालि से भी अधिरः बलशाली, नंदीपेण से भी अधिक सेवाभावी है ? यदि नहीं, तो फिर बापका अभिमान कार्य है, झूठा है ! इस अभिमान के समय हमेशा अपर---अपने से बड़ों को देगना चाहिए। इस नितन से अभिमान नेले ही गल जाना है जैसे हवा लगने से पानी की व गल जाती है। अभिमान को दिया मारने का मार
नीलगाउपाय खगाय में गम ! निनस होगा। विनमशीन गति संगति आदि मिलने पर भी मार नहीं पता किन्तु ओ.. freनिस
का है। चीन कायम में बताया गया की को सीन बार प्रधानमंत्री बनाया और लोग भारी पदमti किन भयो प्रधानमंत्री बनाया गयाको गीत बहरे पर मोदी
नेगा नही नगी और हटाया हो की भीगा मानो।