Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रतिसंलीनता तप
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स्त्रियों के बीच में ब्रह्मचारी कितने दिन अपना ब्रह्मचर्य अस्खलित रख सकता है ? इसीलिए ब्रह्मचर्य व्रत की पांच भावनाओं में पांचवी भावना में कहा है - ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ स्त्री-पशु-नपुंसक आदि से रहित शुद्ध स्थान में रहे, क्योंकि केवली - भगवान ने कहा है- वहां रहने से हो सकता है कभी उसके मन में चंचलता, उन्माद, मोह या उत्तेजना आदि के रूप में शांति भंग करने वाला भेद उत्पन्न हो जाय, अतः पहले ही उसे उस स्थान का त्याग कर देना चाहिए ।' कहा तो यहां तक गया है कि
कामं तु देवोहि विभूसियाहि
न चाइया खोयइउ तिगुत्ता ।
तहा वि एगंतहियं ति नच्चा विवित्तवासो मुणिणं पसत्यो । २
यदि वह ब्रह्मचारी परम संयमी हों, देवांगनाएं भी उसके चित्त को क्षुब्ध न कर सकती हों, फिर भी साधु ब्रह्मनारी को स्त्रियों आदि से रहित एकांत स्थान में ही रहना उचित है ।
अभय साधना के योग्य आयास
विविक्त शय्या में दूसरी दृष्टि है-साधक को निर्भयता एवं साहसिकता का अभ्यास करना । भ. महावीर के युग में विशाल प्रासादों में, विहारों में सुख-सुविधा के साधनों को भी होड़ लग गई थी। बौद्ध ग्रन्थों में विशाखा के प्रासाद निर्माण की घटना बड़े गौरवपूर्ण शब्दों में गाई गई है। जब प्रसाद निर्माण संपन्न हो गया तो विशाखा की एक महली ने बुद्ध के आराम कक्ष वाने के लिए एक बहुमूल्य (एक सहस्र मुद्रा का ) नागदा और विधा को दिखाते हुए कहा-सुन्दर मुलायम गलीचा में एक नाराम गृह (एक नामरे) में विधानाचाहती है। दिशाया कुछ नही बो महंत को प्रदा के लिये से गई और
य
गाली
१. धानानि सूत्र २
उतराध्ययन-३२९१६