Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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. जन धर्म में तप
यहां अनेक पि, शिष्य व गौ-मूग आदि जाश्रय पाते थे । प्राचीन भारत में भने बड़े-बड़े पापियों के भाश्रम व तपोवनों का वर्णन महाभारत, भागवत एवं उत्तरवर्ती भागों में मिलता है । आधर्मों का वातावरण बड़ा प्राङ्गासिक ... सुपमा युक्त, मनोहर, शांत एवं साधना मे अनुगूल रहता था । किन्तु पियों - ता भावात्मक (रागात्मक) सम्बन्ध भी उन आश्रमों के साथ उतना ही गारा जुशमा बा जितना मिली राणा का अपने राजमहल या श्रेणी का अपने
म्यं के साथ । गृहत्याग कर आश्रमवाम स्वीकार किया और यहां भी गदि । ममत्व जुट गया तो फिर एक छोटा पर छोड़ बड़ा घर बसाने जैसी बात हो गई। फिर घर और आश्रम में अन्तर क्या रहा ?
वैविक नियों की भांति बोर श्रमणों ने भी आश्रम परंगरा को अपनाया। . बुद्ध के युग में स्थान स्थान पर बड़े-बड़े आराम और विहागे का निर्माण
या। गृहपति अनापियका जेतवन और विशामा मृगारमाता द्वारा राताईस कोई व मुद्रा मन गारो बनवाया हुआ महामासाद बौद्ध इतिहास में बाजी प्रसिद्ध । बौद्ध ग्रन्थों अनुसार अनापिटया ने मोहरें विधायर भूमिगोपनीदी थी. अर्थात् आगम बनाने के लिए श्रावस्ती में राजगार
पोर में भूमि परीदी और हिर , करो कपये निर्माण में प्रा fam' बोल पारा में श्रमणों के लिए बिहार एवं प्रासाद का निर्माण एक बीमार पूर्ण पुनौका गुम समझा जाता रहा है।
अनिकेत जेन मन जन E पर शेनों परगनाओं से मांगा मिल रही है। हिनी भी कराया इस ने अपने जीयकारों का मानों में आure infor 4, fir या मासा या fruirrfant tोना
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