Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप
कुछ साधक सबसे पहले मन को एकाग्र करने की बात करते हैं, किन्तु यदि मन शुद्ध नहीं हुआ तो एकाग्रता से क्या लाभ होगा ? मछली को पकड़ने के लिए बगुला भी एकाग्र होता है, चूहे पर ताक लगाकर बिल्ली भी एक चित्त होकर बैठी रहती है- क्या यह एकाग्रता नहीं है ? किन्तु यह एकापता भी घातक अशुद्ध एवं पाप मय है । इसलिए जैन दर्शन पहले मन के परिवार की बात कहता है । फिर एकाग्रता की ! शुद्ध मन ही एकाग्रता रूप ध्यान -- चितन कर सकता है | तीन घुड़सवार
भारतीय साधकों में कुछ हठयोगी सायक मन को मारने की बात भी कहते हैं | नशा करके, भांग, गांजा चरा आदि के द्वारा मन को विवाद शून्य करने के प्रयत्न करते हैं ! मन को मूच्छित कर के तल्लीनता का आनन्द अनुभव करना चाहते हैं । किन्तु यह साधना का गलत तरीका है। मन को मूच्छित करने से, इन्द्रग आदि को काट देने से मन स्थिर नहीं हो सकता, वह तो एक प्रकार का मुर्दा मन हो जायेगा । मन अपंग हो गया, मूि हो गया तो फिर शुभ कार्यों में भी यह गतिशील नहीं होगा ? अच्छा पुराबार वह नहीं है जो घोड़ा में नहीं जाये तो उसकी टांग वोडकर संगा
से घोड़े को में करे
ही कर दे, घुड़सवार तो यह है जो अपनी अपने
काव् में रमे ।
किसी राजा के तीन पुत्र थे । तीनों ही के बहुत एकबार राजदरबार में बहुत से विदेशी पो आये। राजा ने तीनों
कुमारों के लिए एस-एक सुपर मोटारी कर दिया। राजकुमार बहुत प्रसन्न हुए । कोनों ही अपने-अपने पोड़ी। दोनो ही में हमें देते
।
रोकने के लिए श्रीराम योग मे घोड़े और मेज ! और किन दौड़ने गये। राजगारीका नेपा
गाईको पानी पर जमी इत
जैसे भी
कमोथेर
उसने अपनी और कीट पोहा यही
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