Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप
अहंकार - मान का सबसे पहला दुष्परिणाम है कि अहंकारी कभी ज्ञानं प्राप्त नहीं कर सकता । सद्गुणों का विकास नहीं कर सकता | बाहुबली एक वर्षं तक खड़े तपस्या करते रहे, किन्तु केवल ज्ञान प्राप्त नहीं कर सके।
दूसरी बुराई है अहंकारी मनुष्य अपना आपा भूल जाता है । अपनी तुच्छ शक्ति को भी विश्व की महान शक्ति मानने लगता है. अंग्रेजी के हास्य रस के प्रसिद्ध लेखक मार्केट्वेन ने एक जगह लिखा है- " अवसर मुर्गी, जिसने सिर्फ अण्डे को जन्म दिया है, ऐसे ककड़ाती है जैसे किसी नक्षम को जन्म दिया हो ।" राजस्थानी भाषा में कहा गया है- "कुत्तो जाणे म्हारे ही पाण गाडो चाले है" - अहंकारी मनुष्य अपनी औकात को नहीं समझ सकता। कहावत है -- " मिजाज बादशाह का, ओकात भटभूजे की " - अहंकार के नो वह अपनी शक्ति का अधिक मूल्यांकन करता है, इसी कारण उसका पतन व विनाश हो जाता है |
में
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अहंकार की तीसरी बुराई है - अपनी शक्ति का ज्ञान का अभिमान करने से मनुष्य उस शक्ति को भी यो बैठता है। ज्ञान का अभिमान करने से ज्ञान नष्ट हो जाता है, बल का अभिमान करने से बल | अभिमान करने से सद्गुणों का नाश हो जाता है। महाभारत में पांडव जय संन्यास लेकर हिमालय पर चढ़े तो कुछ दूर जाने पर से नीचे गिरते गये। नकुल के मन में अपने
इस कारण
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यह हिमालय की ऊपरी नोटी पर चढ़ नहीं था । देव को अपने ज्योतिष ज्ञान था, अर्जुन को बाप-विद्या का भीम की मुजका अभिमानास कारण कोई भी हिमालय पर नहीं सके न ही में धर्मपुत्र निरभिमान इस और उनका कुत्ता (धर्म रूपी) दोनों स्व में पहुंचे। इनका यह है कि गुण का अभिमान करने से भी मनुष्य अपने गुणों की है। जैfra यही यात हैमभिमान करता है, यह अगले जन्म में विष में गन करना है। उनका अभिमान मारने के तीन गोपकरणों में भरे पड़े है।
सद्गुणों का
लेख है -
हिमाल