Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रतिसंलीनता तप रोक लेता है, कुशल वैद्य देह में फैलते हुए सर्प विप को औषधि के द्वारा शांत कर देता है वैसे ही भिक्षु चढ़े हुए क्रोध को (फल परिणति से रोककर) शांत कर देता है।
जैसे दौड़ती हुई गाड़ी के सामने यदि कोई मनुष्य, या गाय-भैंस आदि आ जाते हैं तो ड्राइवर तुरन्त गाड़ी को ब्रेक लगाकर रोकने की चेष्टा करता है, यदि उस समय गाड़ी को न रोका जाय तो तुरन्त दुर्घटना हो जाती है । इसी प्रकार चढ़ते हुए क्रोध को रोकना चाहिए, वर्ना वह भी कोई दुर्घटना कर डालेगा। क्रोध को विफल करने के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अनेक उपाय बताये हैं
भगवान महावीर ने कहा है-उवसमेण हणे फोहर --क्रोध को शांति (उपशम) से जीतना चाहिए।
चीनी संत कन्फ्यूसियस का कथन है-क्रोध उठे तब उसके नतीजों पर विचार करो!
वाईविल में लिखा है-क्रोध करने में विलम्ब करना विवेक है, और शीघ्रता करना मूर्खता।
___इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मुहम्मद साहब का कहना है-'गुस्सा आने के समय बैठ जाओ ! फिर भी शांत न हो तो लेट जाओ।'
सैनेका नामक विदेशी विचारक ने लिखा है-क्रोध का एक ही इलाज है-विलम्ब !
कहते हैं-अमेरिका में एक प्रोफेसर को क्रोध बहुत आता था । वह स्वयं अपनी इस आदत पर बहुत दुःखी था, पर कोशिश करके भी वह क्रोध के समय अपने पर काबू नहीं रख पाता था। एक बार प्रोफेसर ने अपने किसी मनोचिकित्सक मित्र से कहा-मेरी यह आदत कैसे छूटे । मित्र ने एक सलाह
१ यो उत्पतितं विनेति कोधं विसठं सप्प विसंऽव ओसधेहिं ।
-सुत्तनिपात १०१११-२ २ दशवकालिक ३६