Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
१००
.... ... जैन धर्म में तप नापित ने कहा-यह पंचर्शल द्वीप की जल धारा में स्थित वट वृक्ष है। नौका चलती हुई इस वृक्ष के नीचे से गुजरेगी । तुम अपना खाने-पीने का सामान लेकर तैयार हो जाओ ! जैसे ही हम वहाँ से गुजरें, वृक्ष की शाखा को पकड़ लेना और ऊपर चढ़ जाना । संध्या के समय पंचशैल द्वीप के बड़े-बड़े पक्षी यहाँ आयेंगे। रात भर यहां विश्राम कर प्रातः वापस द्वीप की ओर उड़ेंगे, तब तुम उनके पर पकड़ लेना, वे तुम्हें पंचशैल द्वीप पहुंचा देंगे।" ___ यक्षिणियों के मोह में फंसा अनंगसेन जान को जोखिम में डाल कर भी सव कुछ करने को तैयार हो गया। वह वृक्ष आया, अनंगसेन ने शाखा .. पकड़ ली, और प्रातः पक्षियों के पर पकड़कर वह पंचशैल द्वीप में पहुंच गया । यक्षिणियां उसकी राह देख रही थी। वहां पहुंचने पर उसने उनसे भोग प्रार्थना की । यक्षिणियाँ नाक मुंह सिकोड़ कर बोली- “मानव का शरीर बड़ा अशुचिमय होता है, हम इस अपवित्र देह के साथ भोग नहीं करतीं। तुम वाल तप करके निदान करो, हमारे स्वामी विद्युन्माली यक्ष के रूप में .. जन्म लो, तब हम तुम्हारे साथ रमण करेंगी।" ।
अनंगसेन एक वार हताश हो गया, पर उसने यक्षिणियों का पीछा नहीं छोड़ा । सोचा- "इस जन्म में न सही, अगले जन्म में तो जरूर इन्हें । प्राप्त करूंगा।" तभी हासा-प्रहासा ने उसे वहाँ के मादक फल खिलाये। शीतल जल पिलाया। उसे नशे जैसी नींद आने लगी। वह एक वृक्ष की ... छाया में सो गया। यक्षिणियों ने उसे उठाकर वापस चंपा नगरी में ... उसके घर पर पहुंचा दिया। कुछ देर बाद उसकी नींद खुली । अपने घर व परिवार को देख कर वह बड़बड़ाने लगा-"मेरी हासा ! प्रहासा ! कहाँ .... चली गई।"""कई दिनों तक वह इसी प्रकार प्रलाप करता रहा। .. . .
अनंगसेन का एक मित्र था गाइल श्रावक ! उसने उसे समझाया"तुम उन के चक्कर में मत फंसो ! जिनोक्त धर्म का पालन करो, इसके
फलस्वरूप तुम्हें सौधर्म आदि स्वर्ग की प्राप्ति होगी, दिव्य देवऋद्धि मिलेगी . उनसे भी सुन्दर देवियां मिलेगी व दीर्घकालीन भोग भी प्राप्त होंगे। किन्तु
तुम उन भोगों की लालसा छोड़कर धर्म का पालन करते रहो।" . .