Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
१८०
जैन धर्म में तर जैन धर्म में बाल तप को बहुत ही निम्नस्तर का माना है, एक और क्षण भर का सज्ञान तप तथा एक और करोड़ों वर्ष का संज्ञान तप-वात तप? दोनों की तुलना में ज्ञानी का क्षण भर का समान तप श्रेष्ठ है, वह एक सांस भर समय में जितने कम खपा सकता है अज्ञानी करोड़ों जन्मों में .. उतने कर्म नहीं खपा सकता।' ___ अकाम तप-जो तप की इच्छा किये बिना ही परवशता आदि के कारण भूखा रहता है, धूप आदि में कष्ट सहता है, यह सब अकाम तप है । वास्तव में यह तप है ही नहीं, एक प्रकार की विवशता है, किन्तु भूख एवं काय-कप्ट को माने तो उसे अकाम तप कह सकते हैं। __ इस तरह अनेक दृष्टियों से, कारणों से जो शारीरिक काप्ट किये जाते हैं उन्हें उस भावना के साथ जोड़ने से उसी प्रकार का तप हो जाता है। फिन्तु उक्त सब तपों में सज्ञान तप, तथा वीतराग तप यही तप श्रेष्ठ है ! .
बौद्ध परम्परा में तप । जैन ग्रन्थों में तप का जितना भी वर्णन है वह प्राय: तप के बारह भेदों . में ही समाविष्ट हो जाता हैं । अन्य धमों में भी तप की महिमा खूब गाई है, तप को परम्परा भी रही है, किन्तु वहां तप की कोई व्यवस्थित विधि या .. मर्यादा, नियम आदि का कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता । बौद्ध श्रमण भी तप करते थे । बुद्ध के कुछ समय पश्चात् तो तप का काफी जोर बौद्ध श्रमणों में । वढ़ा है, उन्हें 'घुतांग तपस्वी' कहा जाता था। स्वयं बुद्ध ने अपने पूर्व साधयः जीवन में कठोर तप का आचरण किया था-ऐसा उन्होंने स्वीकार किया है । वह तप जैन तप साधना से काफी मिलता-जुलता है। पिन्तु उसके पश्चात् । बुद्ध ने तप को उतना महत्व नहीं दिया, और न कोई विशेष उपदेश भी इस सम्बन्ध में दिया। साधारणतः वहां तप की श्रेष्ठता एवं निकृष्टता पर विचार किया गया है । इसी दृष्टि से बुद्ध ने चार प्रकार के तप करने वाले बताये है
१. प्रवचनसार ३३८