Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तपस्वियों को अमर परम्परा आज भी स्थानकवासी व तेरापंथी संप्रदायों के लिए स्मरणीय है । वे एक महान श्रुतधर विद्वान आचार्य तो थे ही, किन्तु इससे भी अधिक वे क्रियानिष्ठ एक महान तपोधन थे। उनके रोमांचक तप का वर्णन सुनते हुए आज भी हम आश्चर्यचकित से रह जाते हैं।।
चार विगे टाली चतुर दीक्षा दिन घो जाण ।
पांच-पांच लग पारणो अभिग्रह धार्यों आन । जिस दिन दीक्षा ग्रहण की उसी दिन से जीवन भर के लिए चार विगय का त्याग कर दिया था और पंचोले-पंचोले-अर्थात् पांच-पांच दिन के उपवास प्रारंभ कर दिये थे। आपको आश्चर्य होगा पांच-पाच का उपवास तो उनके जीवन भर का साधारण नियम बन गया था। पांच दिन के बाद एक दिन भोजन करना उसमें भी चार विगय का त्याग और फिर पांच दिन का उपवास । किन्तु उनके तप की सीमा इतनी ही नहीं थी। इस श्रम के बीच अनेक माससमण, चोमासी, पंचमासी तप भी किये
पांच मास पाली में फोना, मेड़ते चार रसाल । चार मास उज्जन पचखिया, चार जोधाणे रसाल। तीन मास इग्यारा आदर्या, दोय मास सप्त धार । मासी तप इफयीस अन्दाता, पक्ष पांच ही लार।
पोसो तप तपियो पूज्य दयाल सुनता आनन्द माये ॥ यह है महामहिम आचार्य श्री के तप का संक्षिप्त वर्णनपांच मासी तप-१, गार मासी तप-३ तीन मानो तप-११ दो मासी तप-७ माससमा तप-२१ पन्द्रह दिन त तग ५
तथा अन्य फुटगार तप अनेक प्रकार का भी करते रहे । आचार्य भद्रबाह ने पतापा है-भगवान महावीर ने सादे बारह वर्ष नापना काल में उपअद्वितीय सप का कारण किया, साड़े बारह वर्ष में मुल ३४६ दिन ही पाहार प्राण किया । शिन्तु जाप माहित होगार देगे कि बागायं यो गुनार जी महाराज ने अपने माराध्यदेय में ममार्ग को और भी MIT निकाय माय अपनाया । अपने मापनामय जीवन में ६० पाये