Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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स्म-परित्याग सप
छाया में बैठने से ही कोई योगी हो जाता है।" राजा भोजल धाया में सो गया। हया के शो में नाथ एक पका हुमा आम नीचे आकर धड़ाम से गिन । गला की नींद गुली। आग की मधुर और मीठी महक से राजा के मुंह में पानी यूट आमा । मंत्री ने प्रार्थना को.---' महाराज ! आग को यौजिये ! यार लाम नहीं, आपके लिए जहर है।"
माझा मंत्री के कारन पर हंग उठा--- "मंत्री राज ! अब तो पूर्ण स्वरूप
प्रया चल होती, यदि एर आमा भी नियाको पा होगा? दो पाक मादा लगे।"
मंत्री का जी भीतर-भीतर याममता उटः । इनका मन आ, राजा महादसेनार नाम को र। तभी राजा ने भाम को नाम लगा लिया ! ममी से ना मना करने पर भी बार अपने आप पर माद नहीं कर
। उसने आम नागा, कुछ ही देर में रोग पुनः भरा जहाना और मंत्री में आगे गाम को बनाया पर बार बाजार मार
दर दिवस पर कोर मेरे पानी में नहारनेगी होनी" रा
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