Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप .
सुकुमारता का त्याग कायपलेश तप का व्यावहारिक जीवन में भी बहुत बड़ा महत्व है। मनुष्य को कोई भी महान कार्य सिद्ध करने के लिए कष्ट तो उठाना पड़ता ही है। शुभ कार्य में अनेक विघ्न बाधाएं आती है-यांसि बहयिनानि ! किन्तु उन विघ्नों को नदी पार करने के लिए साहस और महिष्णुताय नाव की .. नावश्यकता होती है । आत्म बल और मनोबल की जरूरत होती है । सुकुमारता और कोमलता से साधना नहीं हो सकती है-एक आचार्य ने महा है--
अम्मा भव ! परमंव ! जद माटों के तूफान मचलने लगे तो तुम अश्मा- अर्थात् पत्थरचट्टान बनमार खड़े हो जाओ! जय नम और आशंका ही बड़ी तुम्हारे पापोंगो बांधने लगे तो कुल्हाड (प) बनकर गाट डालो। तभी तुम अपने सर । की प्राप्ति कर समांगे। भगवान महावीर तने बड़े राजमार थे, किती कोमल और सुपुमार ? किन्तु जब साधना के पथ पर तो मुकुमारसा यहां गायब हो गई? तो मेन से भी अधिक कठोर होकर काष्टों को मन लगे । शालिभद्र कितने गुरुमार थे? नामा प्रेमिका को गोदी में बैठने पर हो पानी र यी गर्मी से उन्हें पसीना आने लगा। किन्तु साधना में य पर यो यो मितने पठोर तपनी बन गये ? गमा अर्थ है माधना में गुरुमाता, मुग... जीना नहीं चल सकती। नमारता राजमारों का भी है । किन्तु माधक जीवन के लिए यह बात अक्षा दुगुन है । इमाम स्पष्ट कहा है--
आपायपाहि अप सोमन गुजुमानता नागरको माना !
. महिला आय: Frmirar
का ?.. . Imfer... मन !