Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप
धीरे-धीरे विषयों की ओर इन्द्रियों को खुली छोड़ देता है-- वह अकान में हो .. मृत्यु या विनाश को प्राप्त हो जाता है, किन्तु जो दृढ़ संयम, इन्द्रिय निग्रह .. और विपयों से विमुखता रख सकता है, वह कष्टों से, संकटों से बचकर .. अपना जीवन सुखपूर्वक दिता सकता है।
इस कथानक के माध्यम से साधक को इन्द्रिय-निग्रह का उपदेश किया। गया है और इन्द्रिय-विपयों में फंस जाने पर कैसी दुर्दशा होती है यह भी समझाया गया है।
इन्द्रियों की यह दासता आज का मानव पहले कछुए की भांति इन्द्रियों की दासता में फंस रहा । है । वह सोचता है, संसार में आये हैं, सब सुख सुविधाएं मिली हैं तो खूब खाओ पियो मौज करो, (Eat Drink And be Merry) धन संपत्ति जो कुछ मिली है, वह खाने-पीने और मौज करने के लिए है । अश्लील गाने और काव्वालियां सुनना, चटपटे मसालेदार उत्तेजक पदार्थ खाना, मांस-मदिरा का सेवन करना उन्मुक्त भोग-भोगना- मर्यादाहीनता व निर्लज्जता के साथ स्त्री-पुरुषों का संसर्ग रखना-यह सब आज के भौतिकवादी युग की देन है। आज का मानव इन्द्रियवादी बन गया है । संयम को, इन्द्रिय निग्रह को . अप्राकृतिक बताता है, और उ.मुक्त भोग को प्राकृतिक । आज के नीतिशास्त्रकारों का कथन है कि अब वह समय आ रहा है जब मनुष्य पशु से भी . अधिक मर्यादाहीन और इन्द्रिय भोगी बन जायेगा । तब गंसार में प्रेग नाम .. की कोई वस्तु नहीं रहेगी-प्रेम का अर्थ सिर्फ-भोग ! उन्मुक्त भोग ! क्षणिक आनन्द होगा ! और विवाह का बंधन भी टूट जायेगा, विवाह सिर्फ कुछ घंटों मा एक समझौता भर होगा । स्त्री नित-नये पुरुप को चाहेगी और पुरुष नित... नयी सुन्दरियों को शोज में भटकता रहेगा--जैसे गली का कुत्ता या जंगल . का मस्त बंदर ! दूध और फल-नों के स्थान पर शराब, होस्पी हो युगमा पेय होगा, अधनंगी वेशभूषा और पागलों के जैसा व्यवहार-वधि यह आने बाले इन्द्रियादी युग का हाल होगा । आज मनुष्य जिन राजी ने दिया लोना बन रहा है, उसे देखते हुए लगता है विचारकों को ये कामगार नहीं