Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जग धर्म में तर
ध्यान साधना में उपयोगी होते हैं। शरीर को स्थिर व निश्चेष्ट बनाकर ध्यान में एकाग्रता प्राप्त करने के लिए जैन साधना में इन आसनों का. महत्व है। इन आसनों को भी दो भेदों में बांटा गया है-गुखासन और .. पठोर आगन ! पद्मासन आदि सुसासन है, बीरासन आदि मठोर आगन है।
आगमों में जिन आसनों की अधिक चर्ना नाती है. ये आसन इस प्रकार
१ स्थानस्थिति-(कायोत्सर्ग) दोनों भुजाओं को फैला कर पर गो . दोनों एत्रियों को परस्पर मिलाना या उनमें चार अंगुल का अंतर .
समगार पढ़ा रहना । आचार्य हेमचन्द्र ने इसे कायोत्सर्गासन याहा है, इसका ला इस प्रकार बताया है
प्रलम्बित भुजहन्नमवस्यस्यासितस्प या।। .
स्थानं फायानपेक्षं यत्मायोत्सर्ग: सोतितः ॥ सगीर के समय का त्याग करके दोनों गुजायों को नोने नटला कर । गरीर और मन को स्थिर मारना 'कायोत्सर्गासन' है। यह भागन गाहे होकर .. मेवार मा कमजोरी यो हालत में लेट गार भी किया जा सकता है। .. शासन की मुहर विभपता नहीं है रिमन-वचन एवं काय के गोग अपिल सिर हो जाने ।
मान () ािर होकर शांश बैठना। इसमें मिशागती ...
. उरुटिपारान दोनों पर और निम्न भूमि संग बटना।
मा नादिरामन। मेन में ही सो मोnिfen की ओर