Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रतिसंलीनता तपं
तो, वाहर से भीतर की ओर मुड़ना ही अतलीनता है, स्वलीनता है, और संलीनता है। ___ जो स्वलीन होगा, वह बाहर से अपने आप को हटा लेगा, भोजन के प्रति, वस्त्र के प्रति, गृह एवं परिवार के प्रति, धन संपत्ति के प्रति उसकी आसक्ति कम हो जायेगी। भोग्य विषयों से वह मन को हटा लेगा, अपने आप में सिमट जायेगा, बाहर से संकुचित हो जायेगा । शास्त्र में बताया हैकुछ द्वीपों में एक पक्षी होता है। उसकी काया बड़ी विशाल व पंख बड़े लम्बे-चौड़े होते हैं । जब कहीं बैठता है तो पंखों को इतना फैला देता है कि लगता है, कोई विशाल वृक्ष टूट कर गिरा है । यदि किसी घर की छत पर बैठ जाये तो पूरे घर पर ही चंदरोवा जैसा तन जाता है। इतने विशाल उसके पंख होते हैं। किंतु जब वह उड़ता है, तो तुरन्त अपने पैरों को ऐसे सिमट लेता है जैसे कपड़ा सिमट लिया हो । जब कहीं कोई उस पर आक्रमण करने आता है,तो वह तेज आंखों से उसे दूर ही से देख लेता है और क्षणों में ही अपने विशाल परों को सिमट कर उड़ जाता है या फिर उस पर टूट पड़ता है। विस्तार और संकोच की इस अद्भुत क्षमता वाले पक्षी का नाम है-- भारंडपक्षी ! अपने आपको संकोच व संयम करने की कला में निपुण होने के कारण शास्त्र में भारंड पक्षी का कई स्थानों पर उल्लेख आता है, और उसकी कला को आध्यात्मिक जीवन के लिए आदर्श बताते हुए कहा हैभारंडपक्खी व चरेऽप्पमत्तो'-भारंड पक्षी की तरह साधक सदा अप्रमत्तसावधान रहे, अपना मंकोच करने में दक्ष रहे। इन्द्रियों को बाहर से सिमटाकर गुप्त रखे।
इन्द्रियों को, कपायों को, मन वचन आदि योगों को, बाहर से हटाकर भीतर में गुप्त करना-छुपाना इसी का नाम संलीनता है। शास्त्र में इसे 'संयम' भी कहा गया है । गुप्ति भी कहा गया है।
१ उत्तराध्ययन सूत्र .. (ख) भारंड पक्षी व अप्पमत्ता -औपपातिक सूत्र
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