Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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- जैन धर्म में तप .. अधिक स्थिर हो सकता हो, साधक उसी आसन का अधिक उपयोग करें। . . आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है
जायते येन-येनेह विहितेन स्थिरं मनः । ..
तत्तदेव विधातव्यं आसनं ध्यान-साधनम् ।' ध्यान साधना के लिए किसी भी विशेप आसन का आग्रह नहीं है। . जिस आसन के प्रयोग से मन स्थिर होता हो, उसी आसन का ध्यान के . लिए प्रयोग किया जा सकता है। ___ तो यह सब आसन कायक्लेश तप हैं, क्योंकि इन आसनों की साधना से... शरीर को कष्ट होता है और साथ ही उसकी चंचलता का निरोध भी ! . .
प्रतिमा धारण करना यद्यपि अनशन तप में बताया गया है, किन्तु काय- ... कष्ट की दृष्टि से इस तप में भी उसे माना जा सकता है । चूकि प्रतिमा में उपवास आदि के साथ उत्कटिकासन, लगण्डशायी, दंडायत आदि का विधान ... है अतः कायक्लेश तप में भी उसका समावेश हो सकता है। ___ कायक्लेश में आतापना और वस्त्र त्याग का भी महत्व बताया गया है। सूर्य की प्रचंड किरणों के सामने शरीर को तपाना-ताप लेना-आतापना है। और शीत ऋतु में कड़कड़ाती सर्दी में वस्त्रों का त्याग करना-अपावृता(उवाउडए) है । सूत्र में कहा है
मायावयंति गिम्हेतु हेमंतेत्तु अवाउडा ।
वासासु पडिसंलोणा संजया सु समाहिना ।। ग्रीमातु में सूर्य के सामने आतापना लेना, शीत ऋतु में वस्त्र त्याग कर खुले शरीर से रहना और वर्षा में एक स्थान पर स्थिर रहना-दंश मगर .. आदि के परीपहों को सहन करना-यह संयत सुमाहित साधु का आचार है। . .
शरीर पर खुजली आये तो खुजलाए नहीं -यूके भी नहीं---यह भी . कायपलेश की विशेष साधना है । सामान्यत: यह शारीरिक आवश्यकता है . और साधारण दशा में नाधर घुजली भी करता है, भूकता भी है । किन्तु
. १ . योगशास्त्र ४११३४