Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तम
अग्नि में स्वयं को तपाना पड़ता है । तभी उसका साधुत्व स्वर्ण की भांति चमकता है । आप जानते हैं-सोना तपे बिना निखर नहीं सकता, दीप जले बिना प्रकाण नहीं फैला सकता, चन्दन घिसे बिना सुगंधि नहीं पतासकता । कहते हैं चन्दन के वृक्ष के पास जाकर सड़े हो जालो तो भी उसकी सुगंधि का पता नहीं चलेगा, सुगंधि तो तब महकेगी जब वह घिसा जायेगा ! मंदी का रंग कब खिलेगा, जब वह बारीक पीसी जायेगी । कहा है
रंग लाती है हिना पत्थर पे घिस जाने के बाद आदमी पाता है शोहरत ठोकरें खाने के याव !
पत्थर भगवान की मूर्ति कव बनेगा ? जब हथोड़े और हनी की चोदें सायेगा | विष पान करने के कारण हो शिव जी 'महादेव' कहलाये । ये व्यावहारिक बातें बताती है कि साधक कष्ट सहे विना सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता ? एक राजस्थानी कहावत है
बातां साटे हर मिले तो म्हांने हो फहज्यो । माया साटे हर मिले तो छाना-माना रहयो !
यदि बातें बनाने से ही भगवान मिल जाये तो हमें भी बुला सेना, वि यदि माया देना- रिहाना पड़े तो बस घुप चाप रहना । किन्तु यह निश्चित है कि भगवान यातां किये से नहीं, माया दिये से ही मिलते है। इसीलिए जैन धर्म में पवन बल दिया गया है कि रूपको सपना से साधक में सहित की ज्योति जलती है। ये मध मगरभाष व आतक्ति कम होती है। और यखा, पीरता, साह और महिमा यो पक्ति हो उठती है।
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