Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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स-परियाग तप
रता पणानं न निषियच्या, पारं सा दित्तिमा नराणं । वित्त व कामा समभिवति,
दम जहा माफर्स प परको १॥ नरम पदायों का अधिक मेवन नहीं करना चाहिए। मलामि सदार गरिष्ट आहार में धातु आदि पुष्टोती, दीयं उत्तेजित होता है, उससे कामानि प्रगट बनती। जोर इस विमान नायर को जागर होने लगते हैं जो दिल वाले वृक्ष को सीमा हार र ले। भाने --
जहा दगी परिपने बर्ष
समागमो नोगाम पर। एपिडियागो विपनाम मोहनों
नमयासिस हिदाय एसा ॥ ११ ॥ जामि मा भोगी हैं जो मामा से अधिक रमशा स्वादिष्ट भोजन करता मनपनियों में समानिनी मानी
जी ही पशि में संगत में शेजवानी होकि में अनि . मिनमानी भी भर में पार जानी है. और नाग्नि का मारमा साजी
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