Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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लशन और अनशन
जैन भागमों में स्वरूप को दृष्टि से तप का वर्गीकरण करके उसके बारह भेद बताये गये हैं, जिनमें छह माभ्यन्तर तप के और छह वाह्य तप के भेद हैं । बाह्य तप में सर्वप्रथम अनदान तप माना गया है। वनदान का अयं है- उपवास ! निराहार ! अशन कहते हैं- आहार को ! भोजन को ! भोजन का त्याग करना अनशन है। अनशन का महत्व और स्वरूप सम के पहले अशन - बाहार के सम्बन्ध में कुछ बातें जान लेनी नावश्यक है।
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अनशन तप
विकराल मूल
जब पेट में भूम लगती है तो भोजन को इच्छा जागृत होती है । जब क भोजन नहीं मिलता मारे भागता है। उसके हाथ पैरन हो जाते है। इसलिए भूल को सबसे बड़ी वेदना माना गया है-पहासमा देवना नबुद्ध ने तो यहा है-जियच्छा परमारोपा
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धम्मपद १३७श