Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में तप
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इच्छा क्रमश: दो दिन तीन दिन, नौ दिन और हजार वर्ष से होती है । सर्वार्थसिद्ध विमान के देवता जो सबसे अधिक सुखी व दोघं आयु वाले (३३ सागर की स्थिति वाले) होते हैं उन्हें ३३ हजार वर्ष से भोजन की इच्छा होती है ।
क्या इससे यह स्पष्ट नहीं होता कि जो जितना अधिक सुखी व भाग्यशाली होगा उसे भोजन की इच्छा उतनी ही कम होगी । और भोजन की मात्रा भी उसकी उतनी ही अल्प होगी ।
एक श्रीमंत सज्जन किसी बड़े डाक्टर के पास अपने के लिए ले गये । डाक्टर ने पूछा- क्या बीमारी है ? खाना बहुत कम खाता है, भूख बढ़ाने की दवा दीजिए। कहा - बुद्धिमान लड़के हमेशा ही कम खाते हैं ।
बच्चे को दिखाने
सज्जन बोले -- यह
डाक्टर ने हंसकर
यह प्रकरण यहां पर इसलिए बताया जा रहा है कि जैन धर्म ने ऊनोदरी को तप क्यों माना है, उसके क्या कारण है ? और उससे क्या लाभ है । उपर्युक्त विवेचन से यह बात स्पष्ट समझ में आ जानी चाहिए, कि ऊनोदरी करने से मनुष्य नीरोग रह सकता है, सुखी रह सकता है सुखपूर्वक साधना कर सकता है । अतः स्वस्थ जीवन के लिए सुखी जीवन के लिये और साधनामय जीवन के लिये कनोदरी तप की आराधना करनी चाहिए ।
अन्य भेद
उत्तराध्ययन सूत्र में क्षेत्र ऊनोदरी व काल ऊनोदरी भी कनोदरी के भेदों में ली गई है। वहां क्षेत्र ऊनोदरी से ग्राम नगर, पत्तन आदि में भिक्षाचरण करना - क्षेत्र ऊनोदरी बताई गई है। इसी प्रकार पेटा, पेटा, गोमूनिका आदि भी क्षेत्र कनोदरी में सम्मिलित किये गये है जबकि ये सब भिधानारी के भेद है, जिनकी चर्चा उनवाई सूत्र तथा भगवती नून में की गई है। प्रश्न हो सकता है, जब से भिक्षा तप में क्यों गिन लिया गया ? समाधान नही है कि इन प्रकारों से भी
के
इन्हें
ज्ञानमय आहार पद
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