Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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के साथ मन करता है । उसका ध्यान आम यदि वह किसी कारण इस प्रतिमा से नलभ्रष्ट हो जाता है तो या तो उन्मत--पागल हो मकता है कोई भयंकर raftara an रोग से पीड़ित हो सकता है, अथवा धर्म से भ्रष्ट भी हो सकता है। यदि इस प्रतिमा को जारापना में सफल होता है तो वह शान की प्राप्ति अवश्य करता है। इसे ही एकरात्रि महाप्रतिमा कहा गया है। राजकुमाल मुनि ने महाकाल में इस महाप्रतिमा को ना
कर एक ही दिन को नाना में मोक्ष प्राप्त किया था।
अमान तप
बाते हैं, भिक्षु उन्हें अपार स्वरूप में ही लीन रहता है।
सर्वतोभद्र प्रतिमा - सर्वतोभद्र प्रतिमा की दो विधियां बनाई गई है। विधाओं की ओर ग करके एक
प्रथम विधि के अनुसार
बहोरात्र का काम
किया जाता है। भगवान महावीर ने इ
भद्र प्रतिमा की आराधना को थी ।
सर्वतोभद्र प्रतिमा को हमरी विधि के दो भेद दिये गये है। एक तोभद्र तथा दूसरी महान |
१
प्रतिमा - सर्वतोभय का वर्ष है अंकों को इस
कार की स्थापना जिनसे हो
गए ना आये।
जैसे सो मंग बनाया जाता है
केसे
योग आता है, वैसे ही प्रत्येक पंक्ति को योग समान होना
सर्वतोभद्र प्रतिमा है।
प्रतिमा उपवास से प्राप्त किया जाता है, ए
परी ही दिन
दिन
(क)जाता है।
परिपाटी होती है | पर
पुती
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होने पर एक
है।
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समय भगता है। कान से
महानतो महारणा (आनाको यो ।
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