Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म में
काव होने के
पादपोपगम अनशन का भी हो जाता है।
उक्त दोनों ही अनशन सामान्य स्थिति में कहा है और यह भी नयन्जय बायु आदि को पता से गायक को मृत् निकट प्रतीत होता हो, अथवा ज्ञान के तथा देवता आदि के वनों में मृत्यु हो गया हो उस स्थिति में साधक संगना के गाव अनशन स्वीकार करता है उसे रण अनशन कहा जाता है । कहीं कहीं (वाई-भगवती ) याद में इनियांघात अनशन भी कहा गया है। किन्तु यदि कभी ऐसी परिपत विजली गिर पड़ी हो, पर्वत से गिरहोग नेमलिया हो उस दशा में मृत्युका अतिनिकट जा जाने से सुरत हो अनशन स्वीकार करता है। भी नहीं रहता कि पहले
श्री जाव
क्योंकि उसमें रेयान का जो उद्देश्य है यह अनको पूर्व भूमिका के इस परी
भी वहां पूर्ण नहीं होता।
ही
पाय आदि को कम की स्थिति को बनाया जाता है, किन्तु आकस्मिक व्यापात आदि में छूटने को स्थिति स्वतः हो प्राप्त हो जाती है, अत: उमा में तो गायक की अनार कर समाधि भाव के साथ शरीर छोड़ने की हो या व्याघातिक अनशन कहा गया है। पर करता है, उसके दिनार मे नोहारिमनोहारी नोहारिम और
जाता है। उक्त अनुदान को
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