Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जनोदरी तप
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मन्न मवीर के लिए इतना आवश्यक होते हुए भी दिया गाया और नियंग के विरुद्ध किया जाये तो वह अमृत समान आहार भी जर का भाग पार देता है । कहा जाता है...
मधुरमपि यहपादितमजीर्ण भवति ।
अमतमपि यह पोतं दिसायले ! बहुत ज्यादा का हागपुर भोजन भी बसोबानगी पेक्षा देता है । मात्रा में शामिल लीयामा अपल भी कार का काम । अति गोलन में आप भी पटता है । आवायं मा ने पहा ---
नारोग्यमनागमस्यायं धाति भोजनाः ।। अधित मोजा गया ... विगाः जाना , अनु महो जाता , जीरा , गार प्राप्त कर पानी परलोर में भारत तो वहां पर भी बिना जान आगाम मे मा को बाप
मन में बना मोको, किन्तु परलोभी Fाना