Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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गर्म में सप सरसो ४.५० आदमी की रसोई अकेला ही भट कार जायेगा । उपर
पंडित जी ! मा.मागे !, पंडित जी ने कहा कोई बात नहीं, पाप माको पुलकी नमने दो ! कार ने गहा---गही ! महाराज ! मा Hinा नमार है, लो और मेरी जान छोड़ो !
तो सभी में अति होती है, दो-चार सेर बाटे में उनमें पेट का पानी भी नीलिमा और ऐसे भी अमोर मोग हो जो १ रोटो में पर माग गाया मा निमा गो अपना हो जाता किनारों को रोटी भोजन मोही माती, पीपी तो बात ही गया? शोज और पाको ानी विभिलता तो है तो भोमग मी गाना मे मम्बा में या कोई पर: गांमान्य नियम बन गया है ? आना सोमदेव गरि में काम ----
___ म भक्ति परिमाणे सिवानोऽस्ति'--- भोजन शिप -मिना साना-... म मम्मी को मिलात नहीं!
कि बिना माना-समोना मानोगमती ? 7 में में बनारसमा भूमितीतः ! पमा मापाचन पिपलानी भीमाशा गाना हि हो, माना टायर हिमनाम ना नि माने में पेट धामा भागमा दूसरे मामय नानासमोरारना चाnिi माग गरे अग्निी , भूगल 17ी
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